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कर्मद्वारा प्रसन्न रखनेवाले पुरोहित समान ये त्रायास्त्रिंशक देव होते हैं । ये देव भोग में बहुत आसक्त होने से उनको दोगुंदक भी कहते हैं । ४. पारिषद्य :
मित्र के समान अथवा सभासदों के स्थान पर जो देव होते हैं, वे पारिषद्य देव हैं । ये समय समय पर इन्द्र को विनोद आदि करके आंनदित करते हैं । ५. आत्मरक्षक :
इन्द्र के विशेष अंगरक्षक ।
इन्द्र की अंगरक्षा के लिए उनकी पीठ के पीछे शस्त्र आदि लेकर जो खड़े रहते हैं तथा अपने स्वामी की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं, ऐसे अंगरक्षक देव
आत्मरक्षक कहे जाते है । यद्यपि इन्द्र को कोई भय नहीं होता, तथापि इन्द्र की विभूति बताने के लिए एवं अन्य देवों पर प्रभाव डालने के लिए कवच धारण करके, शस्त्रसहित इन्द्र के पीछे खड़े रहते हैं । शिरस्त्राण (पगडी, हेल्मेट) की भांति ये कवच भी प्राणरक्षक होते है । ६. लोकपाल :
चौकीदार पुलिस या चर के समान ।
जो चोर आदि से रक्षा करनेवाले कोतवाल के समान होते हैं । सरहद की रक्षा करने से इनको लोकपाल कहते हैं । ७. अनीक :
लश्कर तथा उसके अधिपति जैसे । अनीक अर्थात् सेना, और उसके अधिपति अर्थात् सेनाधिपति । दंडनायक स्थानीय, दंडनायक अथवा सेनाधिपतिसेनानी को अनीक कहते हैं। ८. प्रकीर्णक :
__ शहरी या देशवासी के समान । जो नगरवासी के समान हैं । सामान्य प्रजाजन जैसे हैं वे प्रकीर्णक कहलाते हैं । ९) आभियोग्य :
नौकर तुल्य देव । जैसे हमारे यहाँ घरेलू काम करने के लिए वेतनभोगी भृत्यनौकर होते है, उसी प्रकार के स्वर्ग में आभियोग्य देव होते हैं ।
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