________________
८३
गर्भज तिर्यंच और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं, ये एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । आनत से लगाकर अनुत्तरोपपातिक देव तिर्यंच पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न नहीं होते, केवल संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं ।
देवों की राज्यव्यवस्था
मनुष्यों में जैसे राज्यव्यवस्था होती है, यथा-- राजा, प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री, अंग-रक्षक, फोजदार, दास-दासी आदि-उसी प्रकार देवलोक में देवों के संचालन की भी व्यवस्था होती है ।
देवों के चारों ही भेदो में इनकी व्यवस्था होती है । व्याख्याप्रज्ञप्ति और तत्त्वार्थसूत्र में दस प्रकार के अधिकारी देवों की व्यवस्थाका उल्लेख है :
१) इन्द्र, २) सामानिक, ३) त्रायस्त्रिंश, ४) पारिषद, ५) आत्मरक्षक, ६) लोकपाल, ७) अनीक, ८) प्रकीर्णक, ९) आभियोग्य और १०) किल्विषिक । १ ) इन्द्र :
सब देवों का अधिपति अथवा राजा ।
सामानिक आदि शेष नौ का अधिपति एवं परम ऐश्वर्य युक्त होने से उसे इन्द्र कहते हैं । भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक इन चारों निकायों के देवों में अपने-अपने निकायवर्ती देवों का जो स्वामी होता है, उसे इन्द्र कहते हैं । जैसे कि सुधर्मा देवलोक के देवों का स्वामी सौधर्मेंद्र हैं ।
२) सामानिक :
इन्द्र नहीं परंतु इन्द्र के समान अमात्य (मंत्री) पिता, गुरू, उपाध्याय आदि के समान जो महान है उसे सामानिक कहते है । इनमें इन्द्रत्व नहीं है, आदेश करने का भी अधिकार नहीं है । किन्तु आयु, वीर्य, भोग, उपभोग आदि में वे इन्द्र के समान होते हैं । इसी प्रकार ऐश्वर्य भी इन्द्र के समान होने से उनको सामानिक देव कहते हैं । ये भी पूजनीय, आदरणीय होते हैं ।
I
३ ) त्रायस्त्रिँश :
पुरोहित और मंत्री ।
राज्य में जिस प्रकार मंत्री और पुरोहित होते हैं, उसी प्रकार देवों में उस स्थान पर ये नियुक्त होते हैं । इन्द्र को सलाह देनेवाले मंत्री या शांति - पुष्टि
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org