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________________ ७३ आनंद का अनुभव प्राप्त कर लेते हैं । देवियों की पहुँच आठवे स्वर्ग तक ही है, ऊपर नहीं । नवें से बारहवें स्वर्ग तक के देवों की काम-सुखतृप्ति केवल देवियों का चिन्तन करने से ही हो जाती है । बारहवें स्वर्ग से ऊपर के देव शान्त और कामलालसा से परे होते हैं । उन्हें देवियों के स्पर्श, रूप, शब्द या चिंतन द्वारा कामसुख भोगने की अपेक्षा नहीं रहती, फिर भी वे नीचे के देवों से अधिक सन्तुष्ट और अधिक सुखी होते हैं । ज्यों-ज्यों कामवासना प्रबल होती है त्यों-त्यों चितसंक्लेश अधिक वढता है तथा ज्यों-ज्यों चितसंक्लेश बढता है त्यों-त्यों उसके निवारण के लिए विषयभोग भी अधिकाधिक आवश्यक होता है । दूसरे स्वर्ग तक के देवों की अपेक्षा तीसरे और चौथे स्वर्ग के देवों की, उनकी अपेक्षा पाचवें-छठे स्वर्ग के देवों की और इस तरह ऊपर-ऊपर के स्वर्गों के देवों की कामवासना मन्द होती जाती है । इसलिए उनका चित्तसंक्लेश भी कम होता जाता है। उनके कामभोग के साधन भी अल्प होते हैं । बारहवें स्वर्ग से ऊपर के देवों की कामवासना शान्त होती है, अत: उन्हें स्पर्श, रूप, शब्द, चिंतन आदि किसी भी प्रकार के भोग की कामना नहीं होती । वे संतोषजन्य परमसुख में निमग्न रहते हैं । इसी कारण नीचे-नीचे की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के देवों का सुख अधिकाधिक माना गया है। देवों के चारों निकाय में इस प्रकार कायप्रवीचार अर्थात् विषयसुख का वर्णन किया गया है । सामान्य विशेषताएं : देवों में गति, शरीर, परिग्रह अभिमान ये चार बाते ऐसी हैं, जो नीचे की अपेक्षा ऊपर के देवों में उत्तरोत्तर कम होती हैं । उसका उल्लेख 'गतिशरीरपरिग्रहाभिमानता हीना' सूत्र में २८-तत्त्वार्थसूत्रकार ने किया है१. गति : गमनक्रिया की शक्ति और गमनक्रिया में प्रवृत्ति ये दोनों ऊपर-ऊपर के देवों में कम होती हैं । क्योंकि उनमें उत्तरोत्तर महानुभावत्व और उदासीनत्व अधिक होने से देशान्तर विषयक क्रीड़ा करने की रति (रुचि) कम होती जाती है। सानत्कुमार आदि कल्पों के देव जिनकी जघन्य आयुस्थिति दो सागरोपम होती है, अधोभूमि में सातवें नरक तक और तिरछे क्षेत्र में असंख्यात हजार कोटाकोटि योजन पर्यन्त जाने का सामर्थ्य Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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