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कौन सा समुद्घात किस कर्म के आश्रित है, निम्न प्रकार से१) वेदना समुद्घात - असाता वेदनीय कर्म को लेकर वेदना समुद्घात होता
२) कषाय समुद्घात - चारित्रमोहनीय कर्माश्रय है । ३) मारणान्तिक समुद्घात - अन्तर्मुहूर्त शेष आयुष्य-कर्माश्रय है । ४) वैक्रिय समुद्घात - वैक्रियशरीरनाम-कर्माश्रय है । ५) तैजस समुद्घात - तैजसशरीरनाम-कर्माश्रय है ।
देवों की कायप्रवीचार (कामसुख) :कायप्रवीचार अर्थात् शरीर के विषयसुख भोगना ।२७
भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा पहले व दूसरे कल्प के वैमानिक ये सब देव मनुष्य की भाँति शरीर से कामसुख का अनुभव करके प्रसन्न होते हैं ।
तीसरे कल्प तथा ऊपर के सभी कल्पों के वैमानिक देव मनुष्य के समान सर्वाङ्गीण शरीरस्पर्श द्वारा कामसुख नहीं भोगते, अपितु अन्यान्य प्रकार से वैषयिक सुख भोगते हैं। तीसरे और चौथे कल्प के देवों की तो देवियों के स्पर्श मात्र से कामतृप्ति हो जाती है । पाँचवे और छठे स्वर्ग के देव देवियों के सुसज्जित (शंगारित)रूप को देखकर ही विषयसुख प्राप्त कर लेते हैं । सातवें और आठवें स्वर्ग के देवों की कामवासना देवियों के विविध शब्दों को सुनने से पूरी हो जाती है । नवें और दसवें तथा ग्यारवें और बारहवें इन दो जोड़ो अर्थात् चार स्वर्गों के देवों की वैषयिक तृप्ति देवियों के चिन्तन करने मात्र से हो जाती है । इस तुप्ति के लिए उन्हो ने तो देवियोंका स्पर्श की उनका रूप देखने की और न गीत आदि सुनने की आवश्यकता रहती है ।
सारांश यह है कि दूसरे स्वर्ग तक ही देवियाँ हैं, ऊपर के कल्पों में नहीं हैं । वे जब तृतीय आदि ऊपर के स्वर्गों के देवों को विषयसुख के लिए उत्सुक अर्थात् अपनी और आदरशील जानती हैं तभी वे उनके निकट पहुंचती हैं । देवियों के हस्त आदि के स्पर्श मात्र से तीसरे-चौथे स्वर्ग के देवों की कामतृप्ति हो जाती है । उनके भंगारसज्जित मनोहर रूप को देखने मात्र से पाँचवें और छठे स्वर्ग के देवों की कामलालसा पूर्ण हो जाती है । इसी प्रकार उनके सुन्दर संगीतमय शब्दों के श्रवण मात्र से सातवें और आठवें स्वर्ग के देव वैषयिक
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