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बादरक्षेत्र पल्योपम का प्रमाण जानने के लिये जिन बालानों का संकेत है, उनके असंख्यात खंड करके पूर्ववत पल्य में भर दो । वे खंड पल्य में आकाश के जिन प्रदेशों का स्पर्श करें और जिन प्रदेशों का स्पर्श न करें, उनमें से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट दोनों प्रकार के सभी प्रदेशों का अपहरण किया जा सके उतने समय के प्रमाण को सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम काल कहते है । इसका काल भी असंख्यात उत्सर्पिणीअवसर्पिणी प्रमाण है । जो बादर क्षेत्र पल्योपम की अपेक्षा अंसख्यात गुना अधिक जानना चाहिये । इसके द्वारा दृष्टिवाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार किया जाता
दिगंबर साहित्य में पल्योपम का जो वर्णन किया गया है, वह उक्त वर्णन से भिन्न है । वहाँ पल्योपम के तीन प्रकारों के नाम इस प्रकार है
१) व्यवहारपल्य, २) उद्धारपल्य और ३) अद्धापल्य ।
इनमें से व्यवहार पल्य का इतना ही उपयोग है कि उसके द्वारा उद्धारपल्य और अद्धापल्य की निष्पत्ति होती है । उद्धारपल्य के द्वारा द्वीप और समुद्रों की संख्या और अद्धापल्य के द्वारा जीवों की आयु आदि का विचार किया जाता है।
सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक और त्रिलोकसार में इनका विशद रूप में विवेचन है ।१८ संहनन :
संहनन अर्थात् हड्डियों की रचनाविशेष को संहनन कहते हैं ।१९ संहनन छह प्रकार के हैं
१) वज्रऋषभ नाराच, २) ऋषभनाराच, ३) नाराच, ४) अर्धनाराच, ५) कीलिका और ६) सेवार्त ।
देवों में एक भी संहनन नहीं होता हैं। उनमें न हड्डी होती है, न शिरा (धमनी नाडी) और न स्नायु । देव-देवियों की आयुष्य-स्थिति देखने के बाद
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