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________________ अब हम उनकी शरीर रचना पर दृष्टिपात करते हुए देव असंहनन होते है । देवों का शरीर बंधारण देवों के शरीर का बंधारण भी विशेष प्रकार का....... संस्थान : संस्थान का अर्थ-आकृति वह छः प्रकार के हैं ।२० उनमें देवों के शरीर दो प्रकार के हैं १) भवधारणीय और २) उत्तरवैक्रिय जो भवधारणीय शरीर है उसका समचतुराग संस्थान (चौरस है जो उदार वैक्रिय शरीर है उनका संस्थान (आकार) नाना प्रकार का होता है क्योंकि वे इच्छानुसार आकार बना सकते है । दस प्रकार के भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पोपपन्न वैमानिक देवों का भवधारणीयशरीर भवस्वभाव से तथाविध शुभनाम कर्मोदयवश समचतुरस्त्रसंस्थान वाले होते है । इच्छानुसार प्रवृत्ति करने के कारण इनका उत्तरवैक्रियशरीर नाना संस्थान वाला होता है। उसका कोई एक नियत आकार नहीं होता । नौ ग्रैवेयक के देव तथा पाँच अनुत्तर विमानवासी देवों को उत्तरवैक्रियशरीर का कोई प्रयोजन न होने से वे उत्तरवैक्रियशरीर का निर्माण ही नहीं करते, क्योंकि उनमें परिचारणा या गमनागमन आदि नहीं होता । अतः उन कल्पातीत वैमानिक देवों में केवल भवधारणीय शरीर ही होता है और उसका संस्थान समचतुरस्र ही होता इस प्रकार सभी देवों का संस्थान होता हैं । देव-विभूषा यहाँ पर देवों की विभूषा का वर्णन देव के प्रकारो के साथ किया जा रहा है देव दो प्रकार के हैं १) वैक्रिय शरीर (उत्तरवैक्रिय) २) अवैक्रिय शरीर (भवधारणीय) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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