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उपरोक्त जिस कुए में जिन बालाग्रों का संकेत किया है उनमें से प्रत्येक बालाग्र के बुद्धि के द्वारा असंख्यात खंड-खंड करके उन सूक्ष्म खंडो की पूर्ववर्णित कुए में ठसाठस भरा जाये और फिर प्रतिसमय एक-एक खंड को उस कू से निकाला जाये । ऐसा करने पर जितने काल मे वह कुआ निःशेष रूप से खाली हो जाये, उस समयावधि को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहते हैं । इसका कालप्रमाण संख्यात करोड़ वर्ष है । इस सूक्ष्म उद्धारपल्योपम से द्वीप और समुद्रों की गणना की जाती है ।
अद्धापल्योपम
'अद्धा' शब्द का अर्थ है काल या समय । इसका उपयोग चतुर्गति के जीवों की आयु ओर कर्मों की स्थिति वगैरह को जानने में किया जाता है । उद्धार पल्योपम के प्रमाण वाले कुए को बालाग्रों से ठसाठस भरने के बाद सौ-सौ वर्ष के अनन्तर एक-एक बालाग्र को निकाला जाये और इस प्रकार से निकालते-निकालते जितना काल लगे निकालने पर कुआ खाली हो जाये, उतने काल प्रमाण को बादर अद्धा पल्योपम कहते है ।
ऊपर के वर्णानुसार जो कुए में बालाग्र लिये गये हैं, उनके बुद्धि द्वारा असंख्यात अदृश्य खंड करके कुए को ठसाठस भरा जाये और फिर प्रति सौ वर्ष बाद एक खंड को निकाला जाये एवं इस प्रकार से निकालते-निकालते जाये जब कुआ खाली हो जाये और उसमें जितना समय लगे, उतने कालप्रमाण को सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं । १६
क्षेत्रपल्योपम
उद्धार पल्योपम के प्रसंग में जिस एक योजन लम्बे-चौड़े और गहरे कुए का उल्लेख है उसको पूर्व की तरह एक से सात दिन तक के भोगभूमिज के बालागों से ठसाठस भर दो। वे अग्रभाग आकाश के जिन प्रदेशों का स्पर्श करे, उनमें से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में समस्त प्रदेशों का अपहरण हो जाये, उतने समय का प्रमाण बादर क्षेत्र पल्योपम कहलाता है । यह कल्प असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवसर्पिणी काल के बराबर होता है ।
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