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________________ ४६ २ वितस्ति = १ रनि २ रनि = १ कुक्षि (दि० पर० किष्कु) २ कुक्षि (किष्कु) = १ दण्ड (धनुष) २ सहस्त्र धनुष = १ गव्यूति ४ गव्यूति = १ भोजन उपर्युक्त माप-वर्णन उत्सेधांगुल से है । उत्सेधांगुल से प्रमाणंगुल पाँच सौ गुण होता है । एक उत्सेधांगुल लम्बी एक प्रदेश की श्रेणी (पंक्ति) को सूच्यंगुल कहते हैं । सूच्यंगुल के वर्ग को प्रतरांगुल कहते हैं और सूच्यंगुल के धन को धनांगुल कहते हैं । असंख्यात कोड़ाकोड़ी घनांगुल गुपित योजनों की पंक्ति को श्रेणी या जगच्छ्रेणी कहते हैं । जगच्छ्रेणी के वर्ग को जगत्प्रतर कहते हैं और जगच्छ्रेणी के धन को लोक या धन-लोक कहते हैं। इनमें से जगच्छ्रेणी के सातवें भाग-प्रमाण क्षेत्र को रज्जु कहते हैं । लोकाकाश का घनफल ३४३ रज्जु प्रमाण है ।२२ काल-माप समय = काल का सूक्ष्मतम अंश जघन्य युक्त असंख्यात समय । = १ आवलिका ४४४६ २४५८५...आवलिका = १ प्राण ७ प्राण = १ स्तोक ७ स्तोक = १ लव ३८३ लव = १ घड़ी २ घड़ी = १ मुहूर्त(४८ मिनिट) ३० मुहूर्त = १ अहोरात्र ३० अहोरात्र = १ मास १२ मास = १ वर्ष ८४ लाख वर्ष = १ पूर्वांग ८४ लाख पूर्वांग = १ पूर्व Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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