________________
रज्ज लम्बी है । इसके ठीक मध्य भाग में मनुष्य-क्षेत्र पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौड़ा गोल-आकार वाला सिद्धक्षेत्र है । इसका आकार रूप्यमय छत्राकार है । इस सिद्धक्षेत्र या सिद्धलोक में कर्मों का क्षय करके संसार चक्र से छुटने वाले मुक्त जीव निवास करते हैं और अनन्त काल तक अपने आत्मिक अव्याबाध निरूपम सुख को भोगते रहते हैं ।
क्षेत्र-माप जैन परंपरा में क्षेत्र-माप इस प्रकार बतलाया गया हैपरमाणु
= पुद्गल का सबसे छोटा अविभागी अंश अनन्त परमाणु
= १ उस्सण्हसण्हिया (उत्संज्ञ संज्ञिका) ८ उस्सण्हसण्हिया
= १ सहसण्हिया (संज्ञासंज्ञिका) ८ सण्हसण्हिया
___= १ ऊध्वरेणु ८ ऊर्ध्वरेणु
= १ त्रसरेणु ८ त्रसरेणु
= १ रथरेणु ८ रथरेणु
= १ देवकुरू के मनुष्य का वालाग्र ८ देवकुरू मनुष्य का बालाग्र ___ = १ हरिवर्ष के मनुष्य का बालाग्र ८ हरिवर्ष मनुष्य क बालाग्र = १ हैमवत के मनुष्य का वालाग्र ८ हैमवत मनुष्य का वालाग्र ___ = १ विदेहक्षेत्रज मनुष्य का वालाग्र ८ विदेहक्षेत्रज मनुष्य का बालाग्र = १ भरतक्षेत्रज मनुष्य का वालाग्र ८ भरतक्षेत्रज मनुष्य का बालाग्र = १ लिक्षा (लीख) के मनुष्य का बालाग्र ८ लिक्षा
= १ यूका (नूं ८ यूका
= १ यवमध्य ८ यवमध्य
= १ उत्सेधांगुल ६ उत्सेधांगुल
= १ पाद २ पाद
= १ वितस्ति
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org