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७) काल
ये देव नारकियों को भिन्न-भिन्न प्रकार के कड़ाहों में पकाते हैं, उबालते हैं, और उन्हे जीवित मछलियों की तरह सेंकते हैं । ८) महाकाल
ये देव नारकों के छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं, पीठ की चमडी उधेडते है और जो नारक पूर्वभव में मांसाहारी होते हैं उन्हे वे मांस खिलाते हैं । ९) असि
ये देव नारकीय जीवों के अंग-प्रत्यंगो के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं, दुःख उत्पादित करते हैं । १०) असिपत्र (धनु)
ये देव असिपत्र नाम के वन की विकुर्वणा करते हैं । नारकीय जीव छाया के लोभ से उन वृक्षों के नीचे आकर विश्राम करते हैं । तब हवा के झोंकों से असिधारा की भांति तीखे पत्ते उन पर पड़ते हैं और उनकी चमडी छिल जाती
११) कुंभि (कुंभ)
ये देव विभिन्न प्रकार के कुंभि जैसे पात्रो में नारकीय जीवों को डालकर पकाते हैं । १२) बालुक
ये देव गरम बालू से भरे पात्रों में नारकों को चने की तरह भूनते हैं। १३) वैतरणी
ये नरकपाल वैतरणी नदी की विकुर्वणा करते हैं । यह नदी पिब, लोही, केश और हड्डियों से भरी-पूरी होती है । उसमें खारा गरम पानी बहता है । इस नदी में नारकीय जीवों को डुबाया, बहाया जाता है । १४) खरस्वर
ये नरकपाल छोटे-छोटे धामों की तरह सुक्ष्म रूप से नारकों के शरीर को चीरते हैं । फिर उनके और भी सूक्ष्म टुकड़े करते हैं । उनको पुनः
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