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२३८ जोड़कर सचेतन करते हैं । कठोर स्वर में रोते हुये उन नारकों को शाल्मली वृक्ष पर चढने के लिए प्रेरित करते हैं। वह वृक्ष वज्रमय तीखे कांटो से संकुल होता है । नारकों को उस पर चढ़ाते है । नरकपाल पुनः उन्हें खींचकर नीचे ले आते है । यह क्रम चलता रहता है । और उनका शरीर कांटो से बिंध जाता है । १५) महाघोष
ये सभी असुरदेवों में अधम जाती के माने जाते हैं । ये नरकपाल नारकों को भीषण वेदना देकर परम मुदित होते. हैं ।
परमाधामी तीन नरक तक होते है, ऐसा उल्लेख है ।६ तो शेष नरक से तीन भूमि में दुःख ज्यादा होगा ? यह शंका होती है।
इस शंका का निवारण किया गया है कि-चौथी से सातवीं नरक तक परमाधामी कृत वेदना का अभाव है, वहाँ क्षेत्रकृत और परस्पर उदीरित दो वेदनाएँ बहुत प्रमाण में होती है । उसकी तुलना में प्रथम तीन पृथ्वी का दुःख अति अल्प होता है। 16 चोथी नरक से असुर-उदीरित दुःख क्यों नहीं होता ?
असुर उदीरित दुःख पहली तीन भूमि तक ही होता है । क्योंकि ये परमाधामी असुर देव तीन पृथ्वी से आगे जा नही सकते । चौथी भूमि या उससे आगे जाने का उनके पास सामर्थ्य नहीं होता । तीन नरक तक भी संक्लेश रूप परिणाम वाले अंब-अंबरीष आदि असुरकुमार वहाँ जाकर दुःख की उदीरणा करते हैं । सभी असुरकुमार वहाँ जाकर दुःखों की उदीरणा नहीं करते । मात्र परमाधामी ही करते हैं । - अंब-अंबरीष आदि परमाधामी देव नारकजीवों को इतना दुःख क्यों देते हैं ?८६
अंब-अंबरीष आदि पंद्रह प्रकार के असुर पूर्व जन्म में भयंकर कर्म करके, थोडा सा पुण्योदय होने से यहाँ जाते हैं । भयंकर पाप कर्म करने में ही उनको खुशी होती है।
भाष्यकार कहते हैं कि असुरकुमार गति की अपेक्षा से देव हैं अन्य देवों की भांति उनको भी मनोज्ञ विषय होता हैं । दूसरे देवों की तरह मनोहर भोग और उपभोग भी इन देवों को होते हैं । तो भी इनको इन सभी सुखद-विषयों
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