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स्पर्श, छ: संस्थान रूप में परिणत द्रव्य एक-दूसरे से बंधे हुए हैं ।
____नस्क = शाश्वत या अशाश्वत __ जैन आगम और जैनदर्शन प्रत्येक वस्तु को विविध दृष्टिकोणों से देखकर उसकी विविधरूपता और एकरूपता को स्वीकार करता है । वस्तु भिन्न-भिन्न विवक्षाओं और अपेक्षाओं से भिन्न रूप वाली है और उस भिन्नरूपता में भी उसका एकत्व रहा हुआ है। एकान्तवादी दर्शन केवल एक धर्म को ही समग्र वस्तु मान लेते हैं । जबकि वास्तव में वस्तु विविध पहलुओं से विभिन्न रूप वाली है । अतएव एकान्तवाद अपूर्ण है, एकांगी है। वह वस्तु के समग्र और सही स्वरूप को प्रकट नहीं करता । जैन सिद्धान्त वस्तु को समग्र रूप वाली मानता है । अतएव एकान्तवाद अपूर्ण है, एकांगी है । वह वस्तु के समग्र और सही स्वरूप को प्रकट नहीं करता । जैन सिद्धांत वस्तु के समग्र रूप में देखकर प्ररूपणा करता है कि प्रत्येक वस्तु अपेक्षाभेद से नित्य भी है, अनित्य भी है, सामान्यरूप भी है, विशेषरूप भी है, एकरूप भी है और अनेकरूप भी है । भिन्न भी है और अभिन्न भी है ।
जैनसिद्धांत अपने इस अनेकान्तवादी दृष्टिकोण से नयों के आधार से प्रमाणित करता है । संक्षेप में नय दो प्रकार के हैं-१) द्रव्यार्थिक नय और २) पर्यायार्थिक नय । द्रव्य नय वस्तु के सामान्य स्वरूप को ग्रहण करता है और पर्याय नय वस्तु के विशेषस्वरूप को ग्रहण करता है । प्रत्येक वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक है ।
वस्तु न एकान्त द्रव्यरूप है और न एकान्त पर्याय रूप है । वह उभयात्मक है । द्रव्य को छोड़कर पर्याय नहीं रहते और पर्याय के बिना द्रव्य नहीं रहता । द्रव्य पर्यायों का आधार है और पर्याय द्रव्य का आधेय है । आधेय के बिना आधार और आधार के बिना आधेय की स्थिति ही नहीं है । द्रव्य के बिना पर्याय और पर्याय के बिना द्रव्य नहीं रह सकता । अतएव कहा जा सकता है कि परपरिकल्पित एकान्त द्रव्य असत् है क्योंकि वह पर्यायरहित है ।।
, जो पर्यायरहित है वह द्रव्य असत् है जैसे बालत्वादिपर्याय से शून्य वन्ध्यापुत्र । इसी तरह यह भी कहा जा सकता है कि परपरिकल्पित एकान्त पर्याय असत् है क्योंकि वह द्रव्य से भिन्न है । जो द्रव्य से भिन्न है वह असत् है जैसे वन्ध्यापुत्र की बालत्व आदि पर्याय। अतएव सिद्ध होता है कि वस्तु द्रव्य
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