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२२४ है । घूमप्रभा के ऊपरी चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तीस योजन का अन्तर है । तमःप्रभा में एक लाख छत्तीस हजार योजन का अन्तर तथा अधःसप्तम पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि का चरमान्त एक लाख अठ्ठावीस हजार योजन है ।६८ इस प्रकार सभी नरकभूमियाँ में अन्तर होता है ।
११. रत्नादिकाण्डों का बाहल्य रत्नप्रभापृथ्वीके खरकाण्ड की सोलह हजार योजन की मोटाई है । रत्नकाण्ड एक हजार योजन की मोटाई वाला है । रिष्टकाण्ड की एक हजार योजन की मोटाई है ।
रत्नाप्रभापृथ्वी का पंकबहुल कांड चौरासी हजार योजन की मोटाई वाला है । अल्पबहुल कांड की अस्सी हजार योजन की मोटाई है।
रत्नाप्रभापृथ्वी का घनोदधि बीस हजार योजन की मोटाई का है। घनवात असंख्यात हजार योजन का मोट है। इसी प्रकार तनुवात और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है ।
इसी प्रकार नरक की सातों पृथ्वी तक घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश की मोटाई कही है ।
काण्ड केवल रत्नप्रभापृथ्वी में ही हैं । खरकाण्ड के सोलह विभाग हैं और प्रत्येक विभाग का बाहल्य एक हजार योजन का बताया है । सोलह काण्डों का कुल बाहल्य सोलह हजार योजन का है । पंकबहुल दूसरे काण्ड का बाहल्य चौरासी हजार और अपबहुल तीसरे काण्ड का बाहल्य अस्सी हजार योजन है। इसी प्रकार रत्नप्रभा के तीनों काण्डों का बाहल्य मिलाने से रत्नप्रभा की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है ।
प्रत्येक पृथ्वी के क्रमशः घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश का बाहल्य उपर की तरह जानना ।६९
१२. रत्नप्रभादि में द्रव्यों की सत्ता एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली और प्रतर-काण्डादि रूप में (बुद्धि द्वारा) विभक्त इस रत्नप्रभापृथ्वी में पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस, आठ
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