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में जन्म लेते हैं इसका उल्लेख गति में प्रकरण में किया गया है ।
___ गति :- असंज्ञी प्राणी मरकर पहली भूमि में उत्पन्न हो सकते हैं । भुज परिसर्प पहली दो भूमियों तक, पक्षी तीन भूमियों तक, सिंह चार भूमियों तक उत्पन्न हो सकते हैं। उरग पाँच भूमियों तक, स्त्री छ: भूमियों तक और मत्स्य व मनुष्य सातवीं भूमि तक जा सकते हैं ।४३
सारांश यह है कि तिर्यंच और मनुष्य ही नरक-भूमि में पैदा हो सकते हैं, देव और नारक नहीं । कारण यह है कि उनमें वैसे अध्यवसाय का अभाव होता है । नारक मरकर पुनः तत्काल न तो नरक गति में ही पैदा होता हैं और न देव गति में । वे तिर्यंच एवं मनुष्य गति में ही पैदा हो सकते हैं ।
नारक के जीव अपना आयुष्य पूर्ण करके कहाँ जन्म ले सकते हैं, वह आगति मे देखेगें । आगति :
पहली तीन भूमियों के नारक जीव मनुष्य गति में आकर तीर्थंकर पद तक प्राप्त कर सकते हैं। पहली चार भूमियों के नारक जीव मनुष्य गति में आकर निर्वाण भी प्राप्त कर सकते हैं । पहली पाच भूमियों के नारक मनुष्य गति में संयम धारण कर सकते हैं। पहली छ: भूमियों से निकले हुए नारक जीव देशविरति और पहली सात भूमियों से निकले हुए सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं ।
नरकभूमी का परिचय नरकभूमियाँ सात है, इसकी अपेक्षा से नारक जीवों के सात प्रकार हैं । नरकभूमियों के नाम और गोत्र में अंतर है । नाम अनादिकालसिद्ध होता है और अन्वयरहित होता है। अर्थात् नाम में उसके अनुरूप गुण होना आवश्यक नहीं है, जबकि गोत्र गुणप्रधान होता है।
सात पृथ्वियों के नाम और गोत्र इस प्रकार से हैं । पृथ्वियाँ
गोत्र प्रथम पृथ्वी धम्मा
रत्नप्रभा द्वितीय पृथ्वी वंशा
शर्कराप्रभा तृतीय पृथ्वी
बालुकाप्रभा
नाम
शैला
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