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चतुर्थ पृथ्वी अंजना
पंकप्रभा पंचम पृथ्वी रिष्टा
धूमप्रभा षष्ठ पृथ्वी मधा
तमप्रभा सप्तम पृथ्वी माधवती तमस्तमप्रभा
नाम की अपेक्षा गोत्र की प्रधानता है, नरकभूमियों के गोत्र अर्थानुसार हैं, अतएव उनके अर्थ से स्पष्ट हैं कि
पहली भूमि रत्नप्रधान होने से रत्नप्रभा कहलाती है । इसी तरह दूसरी शर्करा (कंकड) के सदृश होने से शर्कराप्रभा है । तीसरी बालुका (रेती) की मुख्यता होने से बालुकाप्रभा है । चौथी पङ्क (कीचड़) की अधिकता होने से पङ्कप्रभा है । पाँचवी धूम (धूएँ) की अधिकता होने से धूमप्रभा है । छठी तमः (अंधकार) की विशेषता से तमःप्रभा और सातवीं महातमः (घन-अंधकार) की प्रचुरता से महातमःप्रभा है । इस प्रकार सातों ही नरक पृथ्वियाँ के नाम गुणनिष्पन्न होते हैं ।
१. नरकपृथ्वियों के भेद और प्रमाणरत्नप्रभापृथ्वी :- यह प्रथम नरक पृथ्वी है इसके तीन प्रकार है
१. खरकाण्ड २. पंकबहुलकांड और ३. अपबहुल (जल की अधिकता वाला) कांड ।
काण्ड का अर्थ-विशिष्ट भूभाग । खर का अर्थ कठिन है । रत्नप्रभापृथ्वी के प्रथम खरकाण्ड के सोलह विभाग हैं । १) रत्नकांड, २) वज्रकांड, ३) वैडूर्य, ४) लोहिताक्ष, ५) मसारगल्ल, ६) हंसगर्भ, ७) पुलक, ८) सौगंधिक, ९) ज्योतिरस, १०) अंजन, ११) अंजनपुलक, १२) रजत, १३) जातरूप, १४) अंक, १५) स्फटिक और, १६) रिष्ठकांड ।
सोलह रत्नों के नाम के अनुसार रत्नप्रभा के खरकाण्ड के इस प्रकार सोलह विभाग हैं । प्रत्येक काण्ड एक हजार योजन की मोटाई (बाहुल्य) वाला है । इस तरह खरकाण्ड की सोलह हजार योजन मोटाई है । उक्त रत्नकाण्ड से लगाकर रिष्टकाण्ड पर्यन्त सब काण्ड एक ही प्रकार के हैं, अर्थात् इनमें फिर विभाग
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