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ये चारों राजधानियाँ (देव की राजधानी देवी के नाम की है) इस प्रसिद्ध जम्बूद्वीप में न होकर दूसरे जम्बूद्वीप में हैं ।
जम्बूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का उन्यासी हजार बावन योजन और देशोन आधा योजन का अन्तर है । (७९०५२ योजन और देशोन आधा योजन) १८५
उपकारिकालयन का वर्णन उपकारिकालयन
प्रशासनिक कार्यों की व्यवस्था के लिए निर्धारित सचिवालय सरीखे स्थान विशेष को कहते उपकारिकालयन है । 'सौधोऽस्त्री राजसदनम् उपकार्योपकारिका' (अमरकोश द्वि. का. पूरवर्ग श्लोक १०, हैम अभिधान कां. ४ श्लोक ५९) किन्तु 'पाइअसद्दमहण्णवो' में उवगारिया+लयण (लेण) इस प्रकार समास पद मानकर उवगारिया का अर्थ प्रासाद आदि की पीठिका और लयण (लेण) का अर्थ गिरिवर्ती पाषाण-गृह बताया है ।
सूर्याभ नामक देवविमान के अंदर अत्यन्त समतल रमणीय भूमिभाग के बीचों-बीच एक उपकारिकालयन बना हुआ है जो एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है और उसकी परिघि (कुल क्षेत्र का घेराव) तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और कुछ अधिक साढे तेरह अंगुल है । एक योजन मोटाई है । यह विशाल लयन सर्वात्मना स्वर्ण का बना हुआ है।
यह उपकारिकालयन सभी दिशा-विदिशाओं में सब और से एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड (उद्यान) से घिरा हुआ है ।८६
पद्मवरवेदिका का वर्णन पद्मवरवेदिका ऊँचाई में आधे योजन ऊँची, पांच सौ धनुष चौडी और उपकारिकालयन जितनी इसकी परिधि है।
इसके जैसे कि वज्ररत्नमय (इसकी नेम हैं । रिष्टरत्नमय इसके प्रतिष्ठान-मूल पाद हैं। वैडूर्यरत्नमय इसके स्तम्भ हैं ।) स्वर्ण और रजतमय इसके फलक-पाटिये हैं । आदि वर्णन मिलता है ।
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