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देवियों का आगमन भगवान् महावीर के वन्दन हेतु देवों के साथ-साथ अप्सराओं या देवियों के आगमन का भी अन्यत्र वर्णन प्राप्त होता है । टीकाकार आचार्य अभयदेव सूरिने ने टीका में संक्षेप में उसे उद्धृत किया है ।
भगवान के समीप अनेक समूहों में अप्सराएँ-देवियाँ उपस्थित हुई। उनकी दैहिक कान्ति अग्नि में तपाये गये, जल से स्वच्छ किये गये स्वर्ण जैसी थी । वे बाल-भाव को अतिकान्त कर-बचपन को लांघकर यौवन में पदार्पण कर चूकी थीं-नवयौवना थीं । उनका रूप अनुपम, सुंदर एवं सौम्य था । उनके स्तन, नितम्ब, मुख, हाथ, पैर तथा नेत्र, लावण्य एवं यौवन से विलसित, उल्लसित थे । दूसरे शब्दों में उनके अंग-अंग में सौन्दर्य-छटा लहराती थी । वे निरुपहत-रोग आदि से अबाधित, सरस भंगार-सिक्त तारूण्य से विभूषित थीं । उनका वह रूप, सौन्दर्य, यौवन, सुस्थिर था, जरा-वृद्धावस्था से विमुक्त था ।
___ वे देवियाँ सुरम्य वेशभूषा-वस्त्र, आभरण आदि से सुसज्जित थीं। उनके ललाट पर पुष्प जैसी आकृति में निर्मित आभूषण, उनके गले में सरसों जैसे स्वर्ण-कणों तथा मणियों से बनी कंठिया, कण्ठसूत्र-कंठले, अठारह लड़ियो के हार, नौ लड़ियों के अर्द्धहार, बहुविध मणियों से बनी मालाएँ, चन्द्र, सूर्य आदि अनेक आकार की मोहरों की मालाएँ, कानों में रनों के कुण्डल, बालियाँ, बाहुओं में त्रुटिक-तोडे, बाजूबन्द, कलाइयों में मानिक-जडे कंकण, अंगुलियों में अंगूठियाँ, कमर में सोने की करधनियाँ, पैरों में सुन्दर नूपुर- पैजनियाँ, चूंघरुयुक्त पायजेबें तथा सोने के कड़ले आदि बहुत प्रकार के गहने सुशोभित थे।
वे पंचरंगे, बहुमूल्य, नासिका से निकलते निःश्वास मात्र से जो उड़ जाएऐसे अत्यन्त हलके, मनोहर सुकोमल, स्वर्णमय तारों से मंडित किनारों वाले, स्फटिक-तुल्य आभायुक्त वस्त्र धारण किये हुए थीं। उन्होंने बर्फ, गोदुग्ध, मोतियों के हार एवं जल-कण सदृश स्वच्छ उज्जवल, सुकुमार-मुलायम, रमणीय, सुन्दर बुने हुए रेशमी दुपट्टे ओढ रखे थे । वे सब ऋतुओं में खिलनेवाले सुरभित पुष्पों की उत्तम मालाएं धारण किये हुए थीं। चन्दन, केसर आदि सुगन्धमय पदार्थों से निर्मित देहरंजन-अंगराग से उनके शरीर रंजित एवं सुवासित थे, श्रेष्ठ धूप द्वारा धूपित थे। उनके मुख चंद्र जैसी कान्ति लिये हुए थे। उनकी दीप्ति बिजली की धुति और सूरज के तेज सदृश थी। उनकी गति, हँसी, बोली, नयनों के
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