________________
१७४
ज्योतिष्क देवों का आगमन भगवान महावीर के सान्निध्य में बृहस्पति, चंद्र, सूर्य शुक्र, शनैश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध तथा मंगल जिनका वर्ण तपे हुए स्वर्ण-बिन्दु के समाना दीप्तिमान् था-(ये) ज्योतिष्क देव प्रकट हुए । इनके अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करने वाले-गतिविशिष्ट केतु-जलकेतु आदि ग्रह, अट्ठाई प्रकार के नक्षत्र देवगण, नाना आकृतियों के पाच वर्ण के तारे-तारा, जाति जाति के देव प्रकट हुए । उनमें स्थित गतिविहीन रहकर प्रकाश करने वाले तथा अविश्रान्ततया-बिना रूके अनवरत गतिशील-दोनों प्रकार के ज्योतिष्क देव थे। हर किसी ने अपने-अपने नाम से अंकित अपना विशेष चिह्न अपने पर धारण कर रखा था । वे परम ऋद्धिशाली देव भगवान् की पर्युपासना करते है ।
वैमानिक देवों का आगमन श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्त्रार, आनत, प्राणत, आरण, तथा अच्युत देवलोकों के अधिपति-इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रादुर्भूत हुए । भगवान के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहा पहुचने से उत्पन्न हर्ष से वे उल्लसित थे ।
जिनेन्द्र प्रभु को वन्दन-स्तवन करने वाले वे (बारह देवलोकों के दस अधिपति) देव पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोगम, विमल तथा सर्वतोभद्रनामक अपने-अपने विमानों से भूमि पर उतरे । वे मृग-हरिण, महिष-भैंसा, वराह-सूअर, छगल-बकरा, दर्दुर-मेंढ़क, हय-घोड़ा, गजपति-उत्तम हाथी, भुजग-सर्प, खड्ग-गैंडा तथा वृषभ-सांड के चिह्नों से अंकित मुकुट धारण किये हुए थे । वे श्रेष्ठ मुकुट ढीले-सुहाते उनके सुंदर सविन्यास युक्त मस्तकों पर विद्यमान थे । कुंडलों की उज्जवल दीप्ति से उनके मुख उद्योतित थे । मुकुट से उनके मस्तक दीप्त-दीप्तिमान थे । बे लाल आभा लिये हुए, पद्मगर्भ सदृश गौर कान्तिमय, श्वेत वर्णयुक्त थे । शुभ वर्ण, गंध, स्पर्श, आदि के निष्पादन में उत्तम वैक्रिय लब्धि के धारक थे । वे तरह-तरह के वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य तथा मालाएं धारण किये हुए थे। वे परम ऋद्धिशाली एवं परम द्युतिमान थे । वे हाथ जोडकर भगवान् की पर्युपासना करते है ।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org