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ये देव स्वयं के इस निवास के बिना कोई कल्प में रहते नहीं हैं । और कल्पातीत ऐसे ग्रैवेयक और अनुत्तर में भी नहीं रहते हैं ।
लोकान्तिक देवों के नाम और जाति९४४ :
इन लोकान्तिक देवों के नाम तथा उनकी जाति विषयक प्ररूपणा निम्न प्रकार से हैं—
नाम
१) सारस्वत
२) आदित्य
३) वह्नि
४) अरूण
५) गर्दतोय
६) तुषित
७) अव्याबाध
८) मरूत
९) अरिष्ट
जाति
अचि
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अर्चिमाली
वैरोचन
प्रभंकर
चन्द्राभ
सूर्याभ
शुक्राभ
सुप्रतिष्ठा
रिष्ठ
लोकान्तिक देवों के विमानों के नाम से ही लोकान्तिक देवों के नाम होते हैं । तत्त्वार्थसूत्र के २५ ओर २६ इन दो सूत्रो के मूल भाष्य में लोकान्तिक देवों के आठ ही भेद निर्दिष्ट हैं, नौ नही । दिगंबर संप्रदाय के सूत्रपाठ में भी आठ की संख्या ही उपलब्ध होती है, उसमे 'मरूत' का उल्लेख नहीं है । जबकि स्थानाङ्ग आदि सूत्रों में नौ भेद मिलते हैं । उत्तमचरित्र में तो दस उल्लेख मिलता है । इससे ज्ञात होता है कि मूल सूत्र में 'मरुतो' प्रक्षिप्त हुआ है ।
इन नौं देवों का दिशा में स्थान :१) ईशान दिशा में सारस्वत । ३) अग्नि दिशा में वहिन । ५) नैऋत्य दिशा में गर्दतोय | ७) वायव्य दिशा में अव्याबाध
भेदों का भी पाठ बाद में
२) पूर्व दिशा आदित्य । ४) दक्षिण दिशा में अरूण । ६) पश्चिम दिशा में तुषित । ८) पश्चिम दिशा में तुषित ।
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