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प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में अठ्यासी (८८) ग्रह, अट्ठावीस (२८) नक्षत्र होते हैं और ताराओं की संख्या छियासठ हजार नौ सौ पचहत्तर (६६९७५) कोडाकोडी होती है ।१२२ २३. ताराओं का अंतर
अंतर :- दो प्रकार होता है -१) व्याघातिम (कृत्रिम) २) निर्व्याघातिम
१) व्याघातिम :- जघन्य २६६ योजन का और उत्कृष्ट १२२४२ योजन प्रमाण हैं।
२) निर्व्याघातिम(स्वाभाविक):- यह अंतर जघन्य ५०० धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का होता है।
(निषध व नीलवंत पर्वत के कूट ऊपर से २५० योजन लम्बे-चौड़े हैं । कूट की दोनों और से ८-८ योजन को छोड़कर तारामंडल चलता है; अतः २५० में १६ जोड देने से २६६ योजन अन्तर निकल आता हैं । उत्कृष्ट अन्तर मेरू की अपेक्षा से है । मेरू की चौड़ाई १०,००० योजन की हैं और दोनों ओर के ११२१ योजन प्रदेश छोड़कर तारामण्डल चलता हैं । इस तरह १०,००० योजन में २२४२ मिलाने में उत्कृष्ट अन्तर आ जाता है२३ ।
(ब) ४. वैमानिक देव देवों के चार भेदों में एक वैमानिक देव नामका भेद है। ये देव उर्ध्वलोक के देवविमानों में रहते हैं, तथा बड़ी विभूति व ऋद्धि आदि को धारण करनेवाले होते हैं।
इन देवों के पास घूमने फिरने को विमान होते है, इसलिए वैमानिक संज्ञा भी प्राप्त है ।१२४ बहुत अधिक पुण्यशाली जीव वहाँ जन्म लेते हैं, और सागरों की आयु पर्यन्त दुर्लभ भोग भोगते हैं । ३. देवों के प्रकार :
वैमानिक देवों के दो भेद हैं१२५ - १) कल्पोपन्न २) कल्पातीत
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