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३३३३
३३३३
५५५५
२०. अभिजित ब्रह्मा हाथी का सर २१. श्रवण विष्णु मुंदग ३ २२. धनिष्ठा वसु पतित पक्षी २३. शतभिषा वरूण
सेना २४.पूर्वाभाद्रपदा अज हाथीका अगला शरीर २ २५.उत्तराभाद्रपदा अभिवृद्धि " " पीछला शरीर २ २६. रेवती
नौका २७. अश्विनी अश्व घोडे का सर ५ २८. भरणी
चूल्हा ३
पूषा
१२३३२१ २२२२ २२२२ ३५५५२ ५५५५ ३३३३
२१. नक्षत्रों के उदय व अस्त का क्रम २९
जिस समय किसी विवक्षित नक्षत्र का अस्तमन होता है, उस समय उससे आठवाँ नक्षत्र उदय को प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार कृतिकादिक के अतिरिक्त शेष नक्षत्रों के भी अस्तमन मध्याह्न और उदय को स्वयं प्राप्त होते हैं।
जैसे :- कृतिका नक्षत्र के अस्तमन काल में मघा मध्यान्ह को और अनुराधा उदय को प्राप्त होता है, इसी प्रकार शेष नक्षत्रों के भी उदयादि का क्रम होता हैं । २२. ताराओं में वृद्धि-हानि :
चन्द्र और सूर्यों के क्षेत्र की अपेक्षा नीचे रहे हुए जो तारक देव हैं, वे द्युति, वैभव, लेश्या आदि की अपेक्षा कोई हीन भी हैं और कोई बराबर भी हैं। चन्द्र-सूर्यों के क्षेत्र की समश्रेणी में रहे हुए तारा देव, चन्द्र-सूर्यों से द्युति आदि में हीन भी हैं और समान भी हैं । तथा जो तारे, चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित हैं, वे द्युति आदि की अपेक्षा हीन भी है और समान भी हैं ।
जैसे-जैसे उन तारों के पूर्वभव में किये हुए नियम और ब्रह्मचर्यादि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता होती है, उसी अनुपात में उनमें अणुत्व या तुल्यत्व होता है । इसलिए चन्द्र-सूर्यों के नीचे, समश्रेणी में या ऊपर जो तारा देव हैं वे हीन भी हैं और बराबर भी हैं।
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