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तारा
पद्मा
भूता
९. मणिभद्र भद्रा मालिनी
कुन्दा
बहुपुत्रा १०. पूर्णभद्र पद्यमालिनी सर्वश्री
उत्तमा ११. भीम सर्वसेना रूद्रा
वसुमित्रा १२. महाभीम रूद्रवती
रत्नाढया कंचनप्रभा १३. स्वरूप भूतकान्ता महावाह रूपवती बहुरूपा १४. प्रतिरूप भूतरक्ता अम्बा सुमुखी सुसीमा १५. काल कला रसा कमला कमलप्रभा १६. महाकाल सुरसा सुदर्शनिका उत्पला
सुदर्शना जहाँ देव रहेते हैं, वहाँ देवियाँ रहती है, इसलिए यहाँ देवियों की गणना का वर्णन किया हैं ।
८. व्यंतर देवों का निवास-क्षेत्र व्यंतर देवों का निवास स्थान जम्बूद्वीप के असंख्यात द्वीप-समुद्र को छोड़कर प्रथम नरक के खर भाग में, राक्षसों को छोड़कर अन्य सात प्रकार के व्यन्तर देव रहते हैं और पंकबहुल भाग में मात्र राक्षसों के आवास हैं ।९१ ।।
रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के ऊपर से एक सौ योजन अवगाहन करके तथा नीचे भी एक सौ योजन छोड़ कर बीच में आठ सौ योजन में, व्यन्तर देवों के तिरछे असंख्यात भौमेय (भूमिगृह के समान) लाखों नगरावास हैं, और आवास हैं ।९२ इन भवनों की बनावट भवनपति के भवनों की तरह होती है । इस प्रकार सभी व्यन्तर देव तीनों लोकों के भवनों तथा आवासों में रहते हैं ।९३
९. नगरावासों का स्वरूप जिस नगर में व्यंतर देवों के आवास-भवन है, वे भौमेयनगर बाहर से गोल और अंदर से चौरस तथा नीचे कमल की कर्णिका के आकार में संस्थित हैं । उन नगरावासों के चारों और गहरी और विस्तीर्ण खाईयाँ एवं परिखाएँ खुदी हुई हैं, जिनका अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है । ये नगर प्राकारों, अट्टालकों, कपाटों, तोरणों, प्रतिद्वारों से युक्त होते हैं । ये नगरावास विविध यन्त्रो, शतघ्नियों, मूसलों एवं मुसुण्ढी नामक शस्त्रों से परिवेष्टित होते हैं । ये देव शत्रुओं द्वारा अयोध्य
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