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________________ १०८ २८००० असंख्य " इन्द्रके परिवार का दिग्दर्शन किया जा रहा हैनं. देव का परिवार की नं. देव का परिवार की नाम गणना नाम गणना १. प्रतीन्द्र १ ८. प्रत्येक अनीक की प्रथम कक्षा २. सामानिक ४००० ९. द्वितीयआदि कक्षा दूनी दूनी ३. आत्मरक्ष १६००० १०. हाथी (कुल) ३५५६००० ४. अभ्यंतर ८००० ११. सातों अनीक २४८९२००० ___ पारि० ५. मध्य पारि० १०००० १२. प्रकीर्णक अभियोग्य व ६. बाह्य पारि० १२००० किल्विष (त्रि. सा.) ७. अनीक ७ इस प्रकार व्यंतरेन्द्रो का वैभव व परिवार होता हैं । प्रत्येक इंद्र अपने अपने परिवार के साथ ऐश्वर्य, विपुल भोग-उपभोगादि करता हुआ रहता है । ७. इन्द्रों की देवियों का निर्देश व्यंतर के १६ इन्द्रों की देवियों के दो प्रकार हैं-गणिका और वल्लभिका । इनके नाम निम्न प्रकार से हैंगणिका वल्लभिका नं. इन्द्रका नाम नं० १ नं. २ नं० १ नं. २ १. किंपुरुष मधुरा मधुरालापा अवतंसा केतुमती २. किन्नर सुस्वरा मृदुभाषिणी रतिप्रिया ३. सत्पुरुष पुरुषाकांता सौम्या रोहिणी । नवमी ४. महापुरुष पुरुषदर्शिनी भोगा ही पुष्पवती ५. महाकाय भोगवती भुंजगा भोगा । भोगवती ६. अतिकाय भुजगप्रिया विमला आनन्दिता पुष्पगंधी ७. गीतरति सुघोषा अनिन्दिता सरस्वती स्वरसेना ८. गीतरस सुस्वरा सुभद्रा नन्दिनी प्रियदर्शना रतिसेना Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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