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१) समिता २) चंडा
३) जाता १) समिता :
आभ्यन्तर परिषदा को समिता कहते हैं । आभ्यन्तर परिषदा के देव बुलाये जाने पर आते हैं । असुरेन्द्र असुरराज चमर किसी भी प्रकार के ऊँचे-नीचे, शोभन-अशोभन कौटुम्बिक कार्य आने पर आभ्यन्तर परिषद के साथ विचारणा करता है, उसकी सम्मति लेता है । चौवीस हजार देव इस परिषदा में होते हैं। साढे तीन सौ देवियाँ होती हैं । इन देवों की स्थिति ढाई पल्योपम की और देवियों की स्थिति डेढ़ पल्योपम कही गई है । २) चंडा :
मध्यम परिषदा को चंडा कहते हैं । देव इस परिषदा के बुलाने पर भी आते हैं, और बिना बुलाये भी आते हैं । मध्यम परिषदा को अपने निश्चित किये कार्य की सूचना देकर इंद्र उन्हें स्पष्टता के साथ कारणादि समझाता है । इस परिषदा में अट्ठावीस हजार देव और तीन सौ देवियाँ होती हैं । इन देवों की दो पल्योपम की और की देवियाँ की एक पल्योपम स्थिति कही गई है । ३) जाता :
बाह्य परिषदा को जाता कहते है । इंद्र बाह्य परिषदा को आज्ञा देता हुआ विचरता है । इसमें बत्तीस हजार देव और ढाई सौ देवियाँ होती हैं । इन देवों की डेढ़ पल्योपम की और आधे पल्योपम की स्थिति कही है। परिषद की संख्या और स्थिति बताने वाली दो संग्रहणी गाथाएँ हैं ।६२
उत्तर दिशा के असुरकुमार बलीन्द्र की परिषदा चमरेन्द्र की परिषदा की तरह होती है । अर्थात् यह भी तीन प्रकार की है१) समिता :
इसमें बीस हजार देव और साढ़े चार सौ देवियाँ होती हैं । देवों की स्थिति साढ़े तीन पल्योपम की और ढाई पल्योपम की स्थिति देवियों की कही गई है । शेष वर्णन चमरेन्द्र की समिता की तरह है ।
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