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किया गया है। ६. इन्द्र का आधिपत्य
भवनवासी देवों के प्रकारों में प्रत्येक के दो इन्द्र होते हैं । वे दोनों अलग-अलग, दिशा का रक्षण करते हैं । जैसे असुरकुमार देव के अन्तर्गत दक्षिण दिशा मे चमरेन्द्र और उत्तर दिशा में बलीन्द्र हैं । दोनों कितने देवों पर आधिपत्य करते हैं, उसका वर्णन निम्नप्रकार से किया गया है ।५९ चमरेन्द्र का आधिप्तय
दक्षिण दिशा के इन्द्र चमरेन्द्र हैं । इस दिशा में असुरकुमार देवों के ३४ लाख भवनावास हैं । वहाँ ६४ हजार सामानिक देवों पर, ३३ त्रायास्त्रिंसक देव, चार लोकपाल सपरिवार ५ अग्रमहिषियों की तीन परिषदा, सात अनीक, सात अनिकाधिपति, चार ६४ हजार (अर्थात् दो लाख ५६ हजार)आत्मरक्षक देव और अन्य बहुत से दक्षिण दिशा के देव-देवियों पर चमरेन्द्र आधिपत्य करता हैं । बलीन्द्र का आधिपत्य
इसी प्रकार उत्तर दिशा के इन्द्र बलीन्द्र हैं । उत्तर दिशा में असुरकुमारों के ३० लाख भवनावास हैं । वहाँ ६०,००० सामानिक देवों पर चार लोकपालों का सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों की तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपतियों के दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का, अन्य बहुत से उत्तर दिशा के असुरकुमार देव-देवियों पर आधिपत्य करते हुए रहते हैं ।
प्रत्येक देव की पहचान के लिये उनका मुकुट एवं उनका, चिह्न अलग अलग होता है । यहाँ उनके मुकुट के चिह्नों के नामों का निर्देश किया जा रहा
सामान्य देवों का निरूपण :
सामान्यतः भवनवासी के सभी देव अति सुखी होते हैं । वे हार से सुशोभित वृक्ष-स्थल वाले होते हैं, कडों और बाजुबंदो से स्तम्भित भुजा वाले होते हैं कपालों को छूने वाले कुण्डल, अंगद तथा कर्णपीठ के धारक होते है उनके हाथों में विचित्र नानारूप के आभूषण होते हैं । वे विचित्र पुष्पमाला और मस्तक पर मुकुट धारण किये हुए होते हैं । दसों जातियों के देवों के मुकुट या आभुषणों के रूप में चिह्न भिन्न होते हैं, जो क्रमशः इस प्रकार हैं
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