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श्रेष्ठ कनक के समान वर्णवाले अर्थात् रक्त वर्णवाले, नील वस्त्रवाले, मुकुट में सिंह के चिह्न से शोभायमान होते हैं ।
द्वीपकुमारेन्द्र अपनी वैक्रिय शक्ति द्वारा विकुँवणा करके अपने हाथ द्वारा संपूर्ण जंबूद्वीप को आच्छादित कर सकते हैं । १०. दिक्कुमार :
दिशाओं में क्रीडा करनेवाले दिक्कुमार होते हैं । जंघा और पैर के अग्रभाग जिनके अधिक शोभावाले है ऐसे जातिवंत तपे हुए सुवर्ण के समान वर्णवाले, श्वेत वस्त्र से युक्त, मुकुट में हाथी के चिह्न से सुशोभित दिक्कुमार होते
पैर के एक प्रहार से संपूर्ण जंबूद्वीप को कंपायमान करने की शक्ति का सामर्थ्य दिक्कुमारेन्द्र का होता है ।
इस प्रकार यौवन भी अभी जिनका नहीं खिला है, ऐसे कुमारों के समान ये दस प्रकार के भवनपति देवों का स्वरूप, उनका स्वभाव, उनकी रुचि, उनकी पहचान के चिह्न तथा उनकी शक्ति का स्वरूप निर्देश यहाँ किया गया । अब उनके अधिपति इन्द्र का स्वरूप निरूपण करेंगे ।
४. भवनपति देवों के इन्द्र का स्वरूप निरूपण :
मनुष्यलोक में राज्य की व्यवस्था देखने के लिए राजा होता है । उसी तरह देवों में सभी देवलोक की व्यवस्था करने के लिए इन्द्र(राजा) होता है । भवनपति देवों के सभी प्रकारों में दो-दो इन्द्र होते हैं । जीवाजीवाभिगम सूत्र में विशेष वर्णन असुरकुमारों में चमरेन्द्र और बलीन्द्र का किया गया है ।५८ इन्द्रों के शरीर का वर्ण-महानील के समान, नील की गोली, गवल (भैंसे का सींग), अलसी के फूल के समान, विकसित कमल के समान निर्मल होता है। वे श्वेतरक्त एवं ताम्र वर्ण के नेत्रों वाले होते हैं । उनकी नाक गरूड के समान ऊँची होती हैं । उनके होठ पुष्ट या तेजस्वी मूंगा तथा बिंबफल के समान होते हैं । उनके दांत श्वेत विमल चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल होते हैं । अग्नि में तपाये और धोये हुए सोने के समान लाल तलवों जैसे उनके तालु तथा जिह्वा होते हैं । उनके बाल अंजन तथा मेघ के समान, काले रूचक रत्न के समान रमणीय होते हैं । वे बाएँ कान में कुण्डल के धारक होते हैं । इस प्रकार उनके शरीर का वर्णन
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