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भवनवासी से ग्रैवेयक
कौन से देवों में उत्पन्न ग्रैवेयक तक
७. कर्मभूमि के मनुष्य-मिथ्यादृष्टि अथवा
सासादन कौन से जीव मरकर कर्मभूमि के मनुष्य-जिसको द्रव्य (बाह्य)जिनलिंग और भाव मिथ्यात्व के
सासादन हो तो ९. भव्य मिथ्यादृष्टि निग्रंथ धारण करी,
महान शुभभाव और तप सहित हो तो १०. परिव्राजक तापसी को उत्कृष्ट उपपाद ११. आजीवक(कांजी के आहारी)का उत्कृष्ट उपपाद १२. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र की प्रकर्षतावाले
ग्रैवेयक में
ब्रह्म(पंचम) स्वर्ग
बारहवें स्वर्ग
सौधर्मादि से अच्युत तक
श्रावक
१३. भावलिंगी निग्रंथ साधु
सर्वार्थसिद्धि तक १४. अणुव्रतधारी तिर्यंच
सौधर्म से बारहवें स्वर्ग पर्यंत १५. पांच मेरू संबंधी त्रीस भोगभूमि के मनुष्य भवनत्रिक में
तिर्यंच मिथ्यादृष्टि १६. मिथ्यादृष्टि सम्यग्दृष्टि
सौधर्म-ऐशान में १७. छनवें भोगभूमि और मानुषोत्तर स्वंयप्रभाचल पर्वत के बिच असंख्यात द्वीप में उत्पन्न
भवनत्रिक में तिर्यंच
जब मनुष्य, तिर्यंच ही शुभ भावों से पुण्योपार्जन करते है तब मरकर देव में उत्पन्न होते हैं ।
देव मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैंकौन सा देव मरकर
कहाँ उत्पन्न होता है १. भवनत्रिक देव और सौधर्म-ऐशान से ऐकेन्द्रिय बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय,
अप्काय, प्रत्येक वनस्पति, मनुष्य
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