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________________ षट्त्रिंशं जीवाजीवविभक्तिसंज्ञमध्ययनम् व्याख्या - वर्णतो यः स्कन्धादिर्हरिद्रः पीतो भवेत् सोऽपि गन्धरसस्पर्श संस्थानतश्च भाज्यः ||२५|| aurओ सुक्कले जे उ, भइए से वि गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥२६॥ व्याख्या - वर्णतो यः स्कन्धादिः शुक्लो भवेत् सोऽपि गन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||२६|| गंधओ जे भवे सुरभि, भइए से वि वण्णओ । सओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥२७॥ व्याख्या - तथा गन्धतो यो भवेत् सुरभिः, सोऽपि वर्णरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||२७| गंधओ जे भवे दुरभि, भइए से वि वण्णओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥२८॥ व्याख्या - गन्धतो यो भवेद् दुरभिः सोऽपि वर्णरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः || २८ ॥ ५५३ रसओ तित्तए जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२९॥ व्याख्या - यो रसतस्तिक्तो भवेत्, सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||२९|| सओ जे भवे कडुए, भइए से वि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३०॥ व्याख्या–यो रसतः कटुको भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३०|| जे उ, भइए से वि वणओ । रसओ कसा गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३१॥ व्याख्या - यो रसतः कषायो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ॥३१॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002569
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykirtisuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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