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सओ अंबिले जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३२॥
व्याख्या - यो रसत आम्लो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः ||३२|
रसओ महुरे जे उ, भइए से वि वण्णओ ।
गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३३॥ व्याख्या - यो रसतो मधुरो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः ||३३|
फासओ कक्खडे जे उ, भइए सेवि वण्णओ ।
गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३४॥ व्याख्या - स्पर्शतो यः कर्कशो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः ||३४||
श्रीउत्तराध्ययनदीपिकाटीका - २
फाओ मउ जे उ, भइ से वि वण्णओ ।
गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३५॥ व्याख्या- स्पर्शतो यो मृदुर्भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः ||३५||
फासओ गरुयए जे उ, भइए से वि वण्णओ ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥ ३६ ॥ व्याख्या - स्पर्शतो यो गुरुकः सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः || ३६ ||
फासओ लहुए जे उ, भइए से वि वण्णओ ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३७॥ व्याख्या - स्पर्शतो यो लघुर्भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि
भाज्यः ||३७||
फासओ सीयए जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३८॥
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