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________________ ५५४ सओ अंबिले जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३२॥ व्याख्या - यो रसत आम्लो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३२| रसओ महुरे जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३३॥ व्याख्या - यो रसतो मधुरो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३३| फासओ कक्खडे जे उ, भइए सेवि वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥३४॥ व्याख्या - स्पर्शतो यः कर्कशो भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३४|| श्रीउत्तराध्ययनदीपिकाटीका - २ फाओ मउ जे उ, भइ से वि वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३५॥ व्याख्या- स्पर्शतो यो मृदुर्भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३५|| फासओ गरुयए जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥ ३६ ॥ व्याख्या - स्पर्शतो यो गुरुकः सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः || ३६ || फासओ लहुए जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३७॥ व्याख्या - स्पर्शतो यो लघुर्भवेत् सोऽपि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानतश्चापि भाज्यः ||३७|| फासओ सीयए जे उ, भइए से वि वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥३८॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002569
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykirtisuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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