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उत्तरज्झयणाणि-२ भावस्स जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए व नागे ॥८९॥ जे यावि दोसं समुवेइ निच्चं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि भावं अवरज्झई से ॥१०॥ एगंतरत्तो रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीडमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥११॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहि तं परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठ गुरू किलिटे ॥१२॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-संनिओगे । वए विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥१३॥ भावे अतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥१४॥ तण्हाऽभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमोक्खई से ॥१५॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥१६॥ भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं हुज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥१७॥ एमेव भावंमि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणेइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागो ॥१८॥ भावे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि संतो जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥१९॥
व्याख्या-एतदपि सूत्रत्रयोदशकं भावाभिलापेन रूपवद् व्याख्येयम्, नवरं मनसश्चेतसो भावोऽभिप्रायः स चेह स्मृतिगोचरस्तं ग्रहणं ग्राह्यं वदन्तीन्द्रियाविषयत्वात् तस्य, मनोज्ञं मनोज्ञरूपादिविषयममनोज्ञं तद्विपरीतविषयमेव ॥ कामगुणेषु मनोज्ञरूपादिषु
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