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आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम्
खुहंझाणे क० क्षुधा भूखनो परीषह उपनई सचित्तादिकनू ध्यान कर्यु होइ ते मिच्छा. अत्र राजगृहिलोकसाथि भिक्षानइ कांक्ष्यु भिक्षा अदीधी भूयउते दृष्टान्त ।।१९।। पंथंझाणे पंथ क. थोडइ कालइ पोहचीइ जे मार्ग तेहनइं विषइ सचित्तादिकनूं ध्यान कर्यु होइ ते मिच्छा. ए बोल सघलइ कहिदुं । अत्र पोतनपुर मार्ग जाता वल्कलचीरीनुं दृष्टान्त ।।२०।। पंथाणं झाणे क. मोटउ अनइ विषम जे मार्ग होइ ते पंथाणं कहीइ तेहनइ विषइ सचित्तादिकनूं ध्यान । अत्र ब्रह्मदत्तनुं मार्ग जाता वर्धननुं दृष्टान्त ।।२१।। निइंझाणे क० निद्रानई विषइ जे पाडुउं [?] ध्यान स्यु होइ । अत्र स्त्यानधि निद्रानइ बलई हस्तिमारक साधुनूं दृष्टान्त ।।२२।। नियाणंझाणे क. स्वर्गादिकनइ विषइ इन्द्रादिकनी पदवीनी वांछा तेहनूं ध्यान । अत्र द्रौपदीनुं दृष्टान्तः ।।२३।।
नेहं झाणे क० पुत्रादिकनइं विषई अतिहि राग । ते स्नेह तेहनूं ध्यान, अत्र अहिरन्नानी मानूं दृष्टान्त ।।२४।। कामंझाणे क० विषयाभिलाष तेहनूं ध्यान, अत्र हासाप्रहासाना वांछणहार सोनीनूं दृष्टान्त ।।२५।। कलुसंझाणे क० अभिलाष माटइ तथा इर्षा माटइ अनेरानां गुणनी प्रशंसा अणसहिते चित्तनूं कलुषपणूं तेहनूं ध्यान, अत्र बाहु-सुबाहुनी प्रशंसा अणसहिएउ पीढमहापीढनुं दृष्टान्त ।।२६।। कलहंझाणे क० कलह कहीइ वचननी वढवडी तेहनूं ध्यान, अत्र नारद दृष्टान्त।।२७।। जुझंझाणे क० वइरीनइं मारवानुं ध्यान अत्र भाई मारिवानइं चेटकराजा संघातइ कोणीकनी परइ ।।२८।। निजुझंझाणे क० संग्राम अणकरवइ मारवानी इच्छा, अत्र बाहुबली भरतनी परइ ।।२९।। संगंझाणे क० संगं कहतां छांडी वस्तुनो अभिलाष, अत्र रथनेमि राजमतीनूं दृष्टान्त ।।३०।। संगहंझाणे क० अतृप्तिपणइं अतिहि घननूं मेलबुं, अत्र मूसमण [मम्मण] श्रेष्ठीनूं दृष्टान्त ।।३१।। व्यवहारंझाणे क० स्व कार्यनइं अर्थई राजकुलादिनई विषइं न्याय करवानूं ध्यान, अत्र बिहूं सउकिमां धन अनइ बेटीनुं दृष्टान्त ।।३२।। ___ कयविक्कयंझाणे० क्रय कहतां मूलइ वस्तु लेवी, विक्रय कहतां वस्तु वेचवी तेहनूं ध्यान, अत्र सोनाना कुलसा लेतां लोभनंदनुं दृष्टान्त ।।३३।। अनत्थदंड क० निःप्रयोजनइ हिंसादिकनूं करवू तेहनूं ध्यान, अत्र दीपायननुं दृष्टान्त ।।३४।। आभोगं क० सपापनइ अभिप्राय निःपापकर्म अज्ञानपणइ हिंसादिकनूं करवू तेहनूं ध्यान, अत्र ब्रह्मदत्तनुं दृष्टान्त ।।३५ ।। अनाभोग कहतां अतिहिं विस्मतिपणइं पीडउं ध्यान, अत्र प्रसन्नचन्द्रनुं ध्यान ।।३६।। अणाविलं क० अणक० ऋण तेणई करी आविलक० कलुषपणूं चित्तनुं तेहनुं ध्यान, अत्र उधरइ तेल लीघइ माहात्मा बहिननुं दृष्टान्त ।।३७। वैरं क० मातापितादिकनो वध केणइ को होइ अनइ ते उपरि वैरनुं करवू तेहनूं ध्यान, अत्र त्रिपृष्ठभाविमारियासीहना जीवहाली, दृष्टान्त ।।३८ ।।
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