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________________ परिशिष्टम् - १८, पञ्चक्रियास्वरूपम् अजीवसामंतोवणिवाइया य, जीवसामंतोवणिवाइया जहा-एगस्स संडो तं जणो जहा जहा पलोएइ पसंसइ य तहा तहा सो हरिसं गच्छइ, अजीवेवि रहकम्माई, अहवा सामंतोवणिवाइया दुविहा-देससामंतोवणिवाइया य सव्वसामंतोवणिवाइया य, देससामंतोवणिवाइया प्रेक्षकान् प्रति यत्रैकदेशेनाऽऽगमो भवत्यसंयतानां सा देससामंतोवणिवाइया, सव्वसामंतोवणिवाइया य यत्र सर्वतः समन्तात् प्रेक्षकाणामागमो भवति सा सव्वसामंतोवणिवाइया, अहवा समन्तादनुपतन्ति प्रमत्तसंजयाणं अन्नपाणं प्रति अवंगुरिते संपातिमा सत्ता विणस्संति । १० - नेसत्थिया किरिया दुविहा-जीवनेसत्थिया अजीवनेसत्थिया य, जीवनेसत्थिया रायाइसंदेसाउ जहा उदगस्स जंतादीहिं, अजीवनेसत्थिया जहा पहाणकंडाईण गोफणधणुहमाइहिं निसिरइ,अहवा नेसत्थिया जीवे जीवं निसिरइ पुत्तं सीसं वा, अजीवे सूत्रव्यपेतं निसिरइ वस्त्रं पात्रं वा, सृज विसर्ग इति । ११ - साहत्थिया किरिया दुविहा-जीवसाहत्थिया अजीवसाहत्थिया य, जीवसाहत्थिया जं जीवेण जीवं मारेइ, अजीवसाहत्थिया जहा-असिमाईहिं, अहवा जीवसाहत्थिया जं जीवं सहत्थेण तालेइ,अजीवसाहत्थिया अजीवं सहत्येण तालेइ वत्थं पत्तं वा ।। १२ - आणमणिया किरिया दुविहा-जीवआणमणिया अजीवआणमणिया य, जीवाणमणी जीवं आज्ञापयति परेण, अजीवं वा आणवावेइ । १३ - वेयारणिया दुविहा-जीववेयारणिया य अजीववेयारणिया य, जीववेयारणिया जीवं विदारेइ, स्फोटयतीत्यर्थः, एवमजीवमपि, अहवा जीवमजीवं वा आभासिएसु विक्केमाणो दो भासिउ वा विदारेइ परियच्छावेइ त्ति भणियं होइ, अहवा जीवं वियारेइ असंतगुणेहिं एरिसो तारिसो तुमंति, अजीवं वा वेतारणबुद्धीए भणइ एरिसं एयंति । १४ - अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा-अणाभोगआदियणा य अणाभोगणिक्खेवणा य, अणाभोगोअन्नाणं आदियणआ-गहणं निक्खिवणं-ठवणं, तं गहणं निक्खिवणं वा अणाभोगेण अपमज्जियाइ गिण्हइ निक्खिवइत्ति वा, अहवा अणाभोगकिरिया दुविहा-आयाणनिक्खिवणाभोगकिरिया य उक्कमणअणाभोगकिरिया य, तत्थादाणनिक्खिवणाणाभोगकिरिया रओहरणेण अपमज्जियाइ पत्तचीवराणं आदाणं णिक्खेवं वा करेइ, उक्कमणअणाभोगकिरिया लंघणपवणधावणअसमिक्खगमणागमणाइ । १५ - अणवकंखवत्तिया किरिया दुविहा-इहलोइयअणवकंखवत्तिया य परलोइयअणवकंखवत्तिया य, इहलोयअणवकंखवत्तिया लोयविरुद्धाइं चोरिक्काईणि करेइ जेहिं वहबंधणाणि इह चेव पावेइ, परलोयअणवकंखवत्तिया हिंसाईणि कम्माणि करेमाणो परलोयं नावकंखइ । १६ - पओयकिरिया तिविहा पण्णत्ता तं० मणप्पओयकिरिया वइप्पओयकिरिया कायप्पओयकिरिया य, तत्थ मणप्पओयकिरिया अट्टरुद्दज्झाई इन्द्रियप्रसृतौ अनियमियमण इति, वइप्पओगो-वायाजोगो जो तित्थगरेहि सावज्जाई गरहिओ तं सेच्छाए भासइ, कायप्पओयकिरिया कायप्पमत्तस्स गमणागमणकुंचणपसारणाइचेठा कायस्स । १७ - समुदाणकिरिया समग्गमुपादाणं समुदाणं, समुदाओ अट्ठ कम्माई, तेसिं जाए उवायाणं कजई Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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