SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्टम्-१९, ध्यानदीपिकाचतुष्पदी १९३ थिरश्रृंगार सुपीन कुच, शशीमुख सुरनी नारि; कामकेलि गुणआगरु, लक्ष्मीने अनुहारि । ११ सुंदर गुण अणिमादियुत, भूषणयुत मतिधीर; पंडित विनय सुजाण नर, जसु अम्लान शरीर । १२ [ढाल-५ - राग-थारा म्होला उपर मेह झरूखे दामनी. हो लाल झरूखे दामनी. एहनी] नही य दुखी को रोग को तिहां दीन छे हो लाल, नको० थिर शोभा छे जास वास सुखमे अछे हो लाल; वास० सभ्य समानिक मंत्रलोक तनुपाल छे हो लाल, लोक० गायन नटूया एम विविध सुरमाल छे । विवि० १ देवलोक सुखओक सदा सुखमे रमे हो लाल, सदा० शीलरूप गुणवंत सहज मनमे गमे हो लाल; सह० नितनित नवनव रंग गीत जयजय सदाहो लाल, गीत० सातधातु गुण देहरूप सुखकर मुदा हो लाल । रूप० २ अतिसुकुमाल शरीर चतुर पंडितवरू हो लाल, चतु० दोष क्लेश भयहीन शांत जिम निशकरू हो लाल । शांत० ३ महारिद्धि गुणवंत जिहां सुर अति घणा हो लाल, जिहां० बेठा सभा मोझार इंद्र सरीखा भएया हो लाल; इंद्र० पुण्यउदे लहे सुख सदा मन ऊमहे हो, सदा० देवलोकनी भूमि सदा सुख गुण गहे हो लाल । सदा० ४ सेवे अमर असंख कंखम नहीं हो लाल, कंख० माने सहु जग आण ताहरी एह सहु हो लाल; ताह० पुण्य उदयनो सुख कहे कवि केटलो हो लाल, कवि० सुरपति आगेआय मंत्रि कहे एतलो हो लाल । मंत्रि० ५ सुरपति चेतन ताम काम ए पुण्यना हो लाल. काम० पूरव कृत तप शील चरण वर दानना हो लाल; चरण० पिण शिवसाधक माग एण गमे नहीं हो लाल, एण० एह विनासी सुख दुःख गिणजे सही हो लाल । दुष० ६ तिहां समकिती देव तत्त्व निज थिर करे हो लाल, तत्त्व० सारे जिनवरसेव जैन महिमा करे हो लाल; जैन० कल्पवृक्ष दसभांति देय मनकामना हो लाल । देव० ७ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy