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परिशिष्टम्-१९, ध्यानदीपिकाचतुष्पदी
सुख सहु जाणे पवनसे ती पुष्प पाडे आपणो, ते पछी जाणे मरण जीवन सुख दुःखनो चांपणो; अति शीघ्र लाभे वरुण भूमे बहु दिने कारज सरे, ए तुच्छ लाभे पवन अग्ने सिद्धता पिण क्षय करे । हां० सि० १० शीघ्र आवे रे, जलतत्त्वे थिर भूमिमे, वीय ठामे रे, कहे पवन मृत अगनिमे; वह्नितत्त्वे रे, घोर युद्ध भय अनलमे, भूमितत्त्वे रे, युद्धे ज वली वरुणमे । वरुणमे ज्ञीपे अधिक दीपे सिंधु थाये रिपुथकी, कै शत्रुदलनो भंग धाये वधे जगमे जस वकि; भूतत्त्वमांहे थाये बर्षा वरुणातत्त्वे अति सही, झड थाय धन विणु पवनतत्त्वे वह्नितत्त्वे धन नही । हां०व० ११ भूजलमे रे, सस्य बहूत अति हे सही, नभ पवने रे, मध्य अग्निमे ह्वे नहीं ; गुरु राजा रे, बंध वृद्ध मिलवा भणी, मने हित रे, सिद्धि चाहे नारीतणी । जो चाह नारी तणी तुजने साधि पूरण नाडिका, रिपुयुद्ध चोरी दुष्टकाजे सहो रिक्ता नाडिका; रिपु घाउसेती पूर्ण नाडी गात्ररक्षा जे करे, तुज अंग बीजे शस्त्र न लगे सर्व रिपुमे जय वरे । हां.स.१२ भूजलमे रे, गर्भप्रश्नथी सुत लहे, अग्नि पवने रे, पुत्री गर्भने नभ देह; भ्रतनाडी रे, पृच्छक जो बेसे सही, सुत पामे रे, रिक्ता नाडि पुत्री कही; कही पुत्री संमुख नाडी खंड उतपति जाणवी, सुष्मणानाडे युगलसंक्रम गर्भहाणि वखाणवी; श्रवण आखी अरु नासिका मुख ढांकी अंगुष्टादिथि, जो वामवेला चले दक्षिण अंग पीडा तो कथी । हां ० अं.१३ शशी थानक रे, वाम अग्रिमे नाडी कही, रवि थानक रे, दक्षिण पुठ नाडी लही;
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