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________________ १७६ ध्यानशतकम् चंद्रनाडे रे, उदय अस्त रविमे भलो, ए उधै रे, पवन विपर्यय गुणनिलो; सितपक्षे रे, प्रातसमे पडिवातणे, वामनाडे रे, पवन चार सुख गण भणे । गण भणे ते विपरीत वहती प्रथम दिन मन भय करी, धन हाणि बीजे दिवस तीजे पंथ देशांतर चरी; अतियुद्ध अर्थविनास विभ्रम दुःख थान विकार ए, दे दिवस पांच लगे चलतो पवन पूठे चार ए । हां प० ७ वाम नाडे रे, अमृतमय हितकारणी, प्राणीने रे, रविनाडी सुखवारणी; वामनाडी रे, अमृत जेम तनु सुख धरे, तिम दक्षण रे, सितपक्षे वरसुख करे । सुख करे ते संग्राम भोजन सुरतकार्य दक्षिणा, मन इष्ट उत्तम धर्म कार्ये वाम नाडि विचक्षणा; जे काज ग्रहगण थकी न थाये तेह वामामे रह्यो, क्षिति वरुण तत्त्वे पवन राजा सर्व सुख साधक कह्यो । हां सर्व० ८ करलिप्रश्ने रे, पूर्ण नाडि पृच्छकतकणो, जय शून्ये रे, वामे पर रिपुनो गिणो; पंडितनो रे, नाम लेय जि ले पछे, तो सीझे रे, कारिज विपरीते न छे । सम वरण ठामै नाडि वामे थित पृच्छकनो जय कह्यो, नवि नाड वेग विषम नामे शस्त्र संपातन लह्यो रोगात भूतगृहीत सर्प दष्टने ताजो करे, शशि नाडि चारी ग्रहे मंत्री तो उभयनो दुख हरे । हां० उ० ९ वाम नाडी रे, वायु पूर्ण जल जो वसे, इहितनी रे, सिद्धि तुरत तिहां उपदिसे; जब जीवत रे, धन तन लाभादिक बहु, है निप्फल रे, पवननष्टथी सुख सहु । Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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