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परिशिष्टम्-१९, ध्यानदीपिकाचतुष्पदी
ते हवे नाशाविवर पुरि उष्ण पीले रंग जे, अति स्वस्थ हलूयो अष्ट अंगुल हृदय नासा संग जे; अति शीघ्र शीतल श्वेतवरणे वरुण वायु वहे सदा, अनुभवे पवन विहार जायक द्वादश अंगुल चर मुदा । ३ वहे तीछ रे, छ अंगुल रंग श्याम ए, शीत उन्हो रे, फरस पवन पुर धाम ए; चोरंगुल रे, अर्द्धवृत्त नवदवसमो, अति उह्नो रे, अग्नि तत्त्वथी मन दमो I थिर कार्य पार्थिव त्त्व दाख्यो वरुण उत्तम कामने, 'चल मलिन काजे वायु वसिक जिनवह्नि तत्व सुधामने; गज तुरग रामा राज्य धन शुभ लाभ भूतत्त्व उपदिसे, राज्य धन सुख सुजन अभिमत सिद्ध वरुण समादिसे । ४ भवपीडा शोकविघ्नपरंपरा, इम दाखे रे, वह्नि तत्त्व दुखकंदरा; भय कलिकर रे, वैरमणदायक वायुतत्त्वे रे, सिद्ध कार्य पण क्षय गछे क्षय गछे खप्रवेशकाले तत्त्व चारे सुखकरु, ते चलणवे अहित दुखकर तत्त्व च्यारे भयधरू; ते पेसता रवि सोम नाडी सुख कारण जाणिज्यो, जी नीकले द्वय नाडी सेती अछे दुखनी खाण तो । ५
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अछे,
मुणे,
वामनाडे रे, तत्त्वभूमि जल सुख नीसरता रे, अग्नि पवन रविथी हरणे; चोमंडल रे, गमनागमन पवनने, तसु दाखूं रे, भलो बूरो फल जन्नने 1 जन्नने मध्यम वाम नाडे चलत दहन समीर ए, जल भूमि दत्तण नाडि चलतां मध्य फल कह्या धीर ए; शशि शूर नाडी दाहत्रय त्रय कही शस्यसुलक्षणा, सितपक्ष वामा उदयकाले कृष्णपक्षे दक्षिणा 1 ६
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