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________________ परिशिष्टम्-१८ पूज्यपादमुनिभावविजयकृत-ध्यानस्वरूपणप्रबन्धः । [ढाल-१, चउपई] सकल जिणेसर पाय वंदेवी, समरी माता शारददेवी; ध्यानतणो हुँ कहुं विचार, श्री जिनवचनतणे अनुसार ।।१।। जीवतणो जे थिर परिणाम,कहीये ध्यान तेहD नाम; तेहतणां छे चार प्रकार, दोय अशुभ दोय शुभ मन धार ।।२।। आर्तध्यान ने रौद्रध्यान, धर्मध्यान वली शुक्लध्यान; दुर्गतिदायक पहेला दोय, सद्गति हेतु अवर दो होय ।।३।। आर्तध्यानना चार प्रकार, तेहमां पहेलो एह विचार; अप्रियविषयतणो संजोग, मन चिंते इम तास वियोग ।।४।। ए कुरूप कां दीसे दैव, विरस भखे ए कुण सदैव फास कठोर कवण ए खमे, अशुभनाद ए कुणने गमे. ।।५।। दुःख दुर्गंध करे बहु एह, कदा एहनो होशे छेह; इम अप्रिय जोगे चिंतवे, एहनो योग म होजो हवे ।।६।। ओ पहेलो आरतनो भंग, बीजे वंछे विषय प्रसंग; सुखकारी रूपादिक जेह, तेह उपर बहु धरे सनेह. ।।७।। धन परिजन भोजन वरनारी, प्रमुख सार ध्याये संसारी; जे देखे रूपादिकवंत, तेहनी लालचि करे अनंत ।।८।। तेहनुं ध्यान धरे निशदिश, ते मुज कां न दीये जगदीश; ते न मिले तो पाडे चीश, घणुं निसासे धूणे शीश ।।९।। जे जे पामे मनोहर भोग, नितु ध्याये तेहनो अवियोग; अणपाम्यानो आणे खेद, ए बीजो आरतनो भेद ।।१०।। त्रीजे रोगादिक आपदा, आवे तव एम चिंते सदा; ए दुःख देह दहे माहरु, कवण उपाय करी संहरूं ।।११।। * આર્તધ્યાન વગેરે ચાર પ્રકારના ધ્યાનને સુંદર ગેય પદ્યોમાં રજૂ કરતો આ પ્રબંધ અનેક હસ્તલિખિત પ્રતોને આધારે શુદ્ધ કરવામાં આવ્યો છે. Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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