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ध्यानशतक व ज्ञानार्णव
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जैसे छन्दों में रचे गये हैं । ग्रन्थ की भाषा, कविता और पदलालित्य आदि को देखते हुए ग्रन्थकार की प्रतिभाशालिता का पता सहज में लग जाता है । सिद्धान्त के मर्मज्ञ होने के साथ वे एक प्रतिभा सम्पन्न उत्कृष्ट कवि भी हैं । ग्रन्थ में उक्त ४२ प्रकरण स्वयं ग्रन्थकार के द्वारा विभक्त किये गये हैं, ऐसा प्रतीत नहीं होता । मूल ग्रन्थ में कहीं किसी भी प्रकरण का प्रायः निर्देश नहीं किया गया है । विषय विवेचन भी प्रकरण के अनुसार क्रमबद्ध नहीं है, किसी एक विषय की चर्चा करते हुए वहां बीच बीच में अन्य विषय भी चर्चित हुए हैं । अन्य ग्रन्थों के भी बहुत से पद्य उसमें 'उक्तं च' आदि के संकेत के साथ और बिना किसी संकेत के भी समाविष्ट हुए हैं, भले ही उनका समावेश वहां चाहे स्वयं ग्रन्थकार के द्वारा किया गया हो अथवा पीछे अन्य अध्येताओं के द्वारा । ग्रन्थ में प्रमुखता से ध्यान की प्ररूपणा तो की ही गई है, पर साथ में उस ध्यान की सिद्धि में निमित्तभूत अनित्यादि भावनाओं, अहिंसादि महाव्रतों और प्राणायामादि अन्य भी अनेक विषय चर्चित हुए हैं । इसीलिए उसके 'ज्ञानार्णव' और 'ध्यानशास्त्र' ये दो सार्थक नाम ग्रन्थकार को अभीष्ट रहे है ' । ग्रन्थ का कुछ भाग सुभाषित जैसा रहा है ।
प्रस्तुत ध्यानशतक में ध्यान व उससे सम्बद्ध जिन विषयों का वर्णन किया गया है उन सबका कथन इस ज्ञानार्णव में भी प्रायः यथाप्रसंग किया गया है । पर दोनों की वर्णनशैली भिन्न रही है । ध्यानशतक का विषयविवेचन पूर्णतया क्रमबद्ध व व्यवस्थित है, किन्तु जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है, ज्ञानार्णव में वह विषय विवेचन का क्रम प्रायः व्यवस्थितरूप में नहीं रह सका है ।
इन दोनों ग्रन्थों में कहीं कहीं शब्द व अर्थ की जो समानता दिखती है वह इस प्रकार है
जं थिरमज्झवसाणं तं झाणं जं चलं तयं चित्तं ।
तं होज्ज भावणा वा अणुपेहा वा अहव चिंता ।। ध्या. श. २ एकाग्रचिन्तानिरोधो यस्तद् ध्यानं भावना परा । अनुप्रेक्षार्थचिन्ता वा तज्ज्ञैरभ्युपगम्यते । । ज्ञाना. १६, पृ. २५६
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निच्चं चिय जुवइ - पसू-नपुंसक - कुसीलवज्जियं जइणो । ठाणं विजणं भणियं विसेसओ झाणकालंमि ।। ध्या. श. ३५ यत्र रागादयो दोषा अजस्त्रं यान्ति लाघवम् ।
तत्रैव वसतिः साध्वी ध्यानकाले विशेषतः । । ज्ञाना. पृ. ८, २७८
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१. श्लोक ११, पृ. ७; श्लोक ८८, पृ. ४४७; व श्लो ८७, पृ. ४४६ । (प्रत्येक प्रकरण के अन्तिम पुष्पिकावाक्य में उसके 'योगप्रदीपाधिकार' इस नाम का भि निर्देश किया गया है ।)
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