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________________ सिरिकुम्मापुत्तचरिअम् आयरियक्खित्ते वि हु पत्ते पडुइंदियत्तणं दुलहं । पाएण को वि दीसइ नरो न रोगेण रहिअतणू ॥१५७।। . पत्ते वि पेडुतणुत्ते दुलहो जिणधम्मसवणसंजोगो । गुरुगुरुगुणिणा मुणिणो जेण न दीसंति सव्वत्थ ॥१५८॥ लद्धम्मि धम्मसवणे दुलहं जिणवयरयणसदहणं । विसयकहपसत्तमणो घणो जणो दीसए जेण ॥१५९।। सदहणे संपत्ते किरिआकरणं सुदुल्लहं भणिअं । जेणं पमायसत्तू नरं करतं पि वारेइ ॥१६०।। यत: प्रमादः परमद्वेषी प्रमादः परमो रिपुः ।। प्रमादो मुक्तिपूर्दस्युः प्रमादो नरकायनम् ॥१६१॥ ते धन्ना कयपुण्णा जे णं लहिऊण सयलसामग्गि । चइअ पमायं चारित्तपालगा जंति परमपयं" ॥१६२॥ इअ सुणिय जिणुवएसं सम्मत्तं के वि के वि चारितं । भावेण देसविरई पडिवन्ना के वि कयपुण्णा ॥१६३।। इत्थन्तरे कमला-भमर-द्दोण-दुमजीवा जे पुरा गया सुक्के । ते चविय भरहखित्ते वेयड्ढे खेअरा जाया ॥१६४॥ चउरो वि भुत्तभोगा चारणसमणंतिए गहिअचरणा । तत्थेव य संपत्ता जिणंदमभिवंदिअ निविट्ठा ॥१६५।। १. ब. पडुत्तणत्ते । २. क गुरुगुणगुरुओ; अ ट गुरुगुणगुणिणो । ३. अ क ब. सव्वसामग्गि । ४. क च छ ब जिणिंद । Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002556
Book TitleSirikummaputtachariam
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages194
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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