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________________ १०४ कूर्मापुत्रचरित्र बाद क्रमशः मिथ्यात्व मोहनीय-मिश्रमोहनीय सम्यक्त्वमोहनीय, अष्टक, नपुंसकवेद, स्त्रीवेद हास्यषट्क, पुरुषवेद, संज्वलन क्रोधादि ४ कषायों, (१७८) दो अशुभगति, दो आनुपूर्वी, चतुरिन्द्रिय, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, (१७९) साधारण, पर्याप्ता, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानद्धि का क्षय करके आठों कर्मों में से 'शेष' का क्षय करने के बाद (१८०) कुछ क्षणों के विश्राम के पश्चात्-प्रथम 'समय' में प्रचला, निद्रा, नामकर्म की प्रकृतियों-(१८१) देवगति-देवानुपूर्वी, वैक्रिय, व्रज-ऋषभनाराच के बिना-दूसरे संघयण, और प्रथम को छोड़ दूसरे संस्थानों, तीर्थंकरनामकर्म और आहारकनामकर्म का क्षय करके, (१८२) दूसरे 'समय' में पाँचो प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्मों, चारों प्रकार के दर्शनावरणीय कर्मों और पाँचो प्रकारों के अन्तराय कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त करती है । १८३. इस प्रकार 'क्षपकश्रेणि' को प्राप्त चारों मुनिवरों को केवल ज्ञान प्रादुर्भूत हुआ । और महाविदेह में आ कर जिनेश्वर के सान्निध्य में केवलि पर्षदा में बेठ गए । १८४. तब वहाँ उपस्थित इन्द्र ने जगदुत्तमजिनेश्वर को–'मुनियों ने ___ आप को क्यों वन्दन किया नही ?-पूछा १८५. भगवन्त ने इन्द्र को इसके उत्तर में कहा, यह मुनियों को कूर्मापुत्र ने सुनाए हुए पूर्वभव के वृत्तान्त सें, केवलज्ञान हुआ है। इसलिए यह केवली मुनियों ने हमें वन्दन किया नहीं है । १८६-१८७. तब फिर से इन्द्र की,-'कूर्मापुत्र केवली कब मुनि व्रत का वेष धारण करेंगे ?-जिज्ञासा को शान्त करते हुए, भगवन्त कहते है,-आज से सातवें दिन तीसरे प्रहर कूर्मापुत्र मुनिवेष धारण करेंगे....और अज्ञान अन्धकार को दूर करते हुए, Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002556
Book TitleSirikummaputtachariam
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages194
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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