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________________ १०२ कूर्मापुत्रचरित्र (मर के) भरतक्षेत्र के वैताढ्यपर्वत में विद्याधर का जन्म पाते हैं। (१६५) विषय सुखों के भुगतने के बाद चारण (= तप के प्रभाव में आकाशगामिनी को प्राप्त करने वाले) मुनि के पास संयमव्रत का अंगीकार किया है। और अब यहाँ समवसरण में जिनेश्वर के वन्दन हेतु आये हुए है-धर्म श्रवण करते है । १६६. उस चारणश्रमणों को देख, देवादित्यचक्रवर्ती ने धर्मचक्रवर्ती जगदुत्तमतीर्थंकर को प्रश्न किया, हे नाथ ! शुभमनवालें ये श्रमण कौन है । और कहाँ से आये है । १६७. तब जिनेश्वर देव, चक्रवर्ती देवादित्य को उत्तर देते है कि ये चारणश्रमण, भरतक्षेत्र के वैताढ्यपर्वत में यहाँ हमें वन्दन करने आये हुए है। १६८. यह सुनते चक्रवर्ती पूछाने लगा, हे भगवन्त ! भरतक्षेत्र में या वैताढ्यपर्वत में अब चक्रवर्ती या केवलीभगवन्त है । १६९. भगवन्त ने चक्रवर्ती को फरमाया :- हे राजन् ! भरतक्षेत्र में अब तो कोइ जिन ही है, केवलज्ञानी मुनि नही है, और चक्रवर्ती राजा भी नही है। किन्तु कूर्मापुत्र नाम के केवलज्ञानी है-किन्तु गृहस्थ वेष में है । १७०. तब चक्रवर्ती राजा ने अचरज से पूछा :-केवली होते हुए वें महात्मा कूर्मापुत्र घर में क्यों रह रहे है ? तब जवाब देते हुए भगवन्त यह बात दिखलाते है-कि कूर्मापुत्र केवली होने पर भी 'अपने माता-पिता को प्रतिबोध हो' इस हेतु से घर में बस रहे है। १७१-१७३. इस बीच चारण श्रमणों ने भगवन्त को पूछा, हे भगवन्त ! हम को केवलज्ञान कब होगा ?-निकट भविष्य में किन्तु (१७२) किस नियत समय पर केवलज्ञान होगा-ऐसा Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002556
Book TitleSirikummaputtachariam
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages194
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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