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धर्मदेव-कूर्मापुत्र चरित्र भावधर्म का माहात्म्य ९२. अब दुर्लभ मुनि स्थविरमुनियों के पास १४ पूर्वो का अध्ययन
करते है । दुष्कर तपश्चरण में उद्यमशील हो अपने माता-पिता मुनि के साथ विचरण करते है । दुर्लभ मुनि और उनके माता पिता = तीन लोग चारित्र पालन करके, आयुष्य के पूर्ण होते ही, महाशुक्र नाम के देवलोक में
मन्दिर नाम के विमान में देव बने । ९४. यक्षिणी वहाँ से च्यवन (= जैन पारिभाषिक = देवो की मृत्यु)
होते ही, वैशाली नगरी में भ्रमर नाम राजा की, कमला नाम
सत्य शीलवती रानी बनी । ९५. भ्रमर राजा और कमला रानी ने जिनधर्म का स्वीकार किया ।
अन्त समय पर शुभ अध्यवसाय के कारने वे महाशुक्र देवलोक
में मन्दिर नाम के विमान में देव हुए। ॥ राजगृही नगरी में कूर्मादेवी रानी के पुत्र-'कूर्मापुत्र ॥' ९६. राजगृह एक बड़ा श्रेष्ठ नगर है। वहाँ की हवेलीयों का व्यवस्था
तन्त्र श्रेष्ठ था । जिससे हवेलीयाँ महेलों के जैसी (जाजरमान=) प्रभावशाली थीं । नगरी के सुचारु व्यवस्थातन्त्र से ही-नयनीति से नगरजनों की हवेलीयाँ देवमन्दिरों की तरह जाज्वल्यमान थी । और वह नगर धन धान्य से समृद्ध था; मतलब यह है कि वह नगर-अपने श्रेष्ठ संचालन तन्त्र, जाज्वल्यमान मंदिर और धन धान्य की समृद्धि से विश्वविख्यात बना हुआ था । ऐस राजगृह नगर में महेन्द्रसिंह राजा था । जो शत्रुरूपी गजराजों को मृत्यु देने वाला सिंह था । उसके नाम से ही रणमेदान में शत्रु-सैनिको की व्यूहरचना की नाकेबन्दी तूट जाती थी ।
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