________________
कूर्मापुत्रचरित्र है। इसी कारण देवो भी तुम्हारे-अपने कर्म के अनुसार ही
धन देते हैं। ८२. देवी की ऐसी बात सुनते ही जौहरी बोला-यदि मेरा कर्म ऐसा
होता, तो मैं आपकी आराधना क्यों करता ? इस लिए आप
मुझे रत्न देजिएगा, 'पीछे जो होना, सो हो' । ८३-८४. देवी ने रत्नों के व्यापारी जौहरी को चिन्तामणिरत्न दे दिया,
तब जौहरी, खुश हो घर जाने को जहाज पर चढ़ा और जहाज की पाटन (डेक) पर बेठा । जहाज जब सागर के बीचोबीच आया, तब पूनम का चाँद पूर्वदिशा में नीकला ।। चाँद को देखते ही जौहरी सोचता है कि यह चिन्तामणि का तेज ज्यादा है ? कि चाँद का ? इस बात का निर्णय करने के लिए वह अपनी हथेली में रहे हुए चिन्तामणि को और चन्द्र को देखने लगा और देखते रहने पर, उसके हाथ से घना चीकना
वह रत्न, सागर में गिर पड़ा। ८९-९०. इस उदाहरण का सार समझाते हुए केवलीभगवन्त फरमाते
है, कि-इस तरह-जो सकलरत्न शिरोमणि चिन्तामणि, सागर में गिर पड़ा हो-खो गया हो । वह जौहरी को ढुंढ़ने पर मीलेगा ? नही न? इसी तरह सेंकडो भव भटकने के पश्चात् मीले हुए मानव भव को प्रमाद वश, खो देता है, किन्तु वह पुरुष धन्य है; कि जो अपने हृदय में जिनधर्म को धारण करते है-उनका
ही जन्म सफल होता है-वह ही जगत में प्रशंसा पात्र बनते है। ॥ कुमार का संयम ग्रहण और सबका ‘महाशुक्र' देवलोक में देव बनना ॥ ९१. केवलीभगवन्त का देशना सुनकर, यक्षिणी ने गुरु के पास
सम्यक्त्व को स्वीकार किया और कुमारने संयम को ।
___Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org