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कूर्मापुत्रचरित्र आधार था । गुणमणि भण्डार था, फिर भी यौवनमद और राजमद से गर्विष्ठ हुआ था, अत एव खेल खेल में ही दूसरे राजकुमारों को गेंद की तरह आकाश में ऊछालता था । और
ऊछाल उछाल कर अपना 'मद' प्रकट करता था । ॥ केवलज्ञानी श्रीसुलोचन मुनि द्वारा दुर्लभ राजकुमार के पूर्वभव
का कथन । १४-१५. कोई एक दिवस दुर्गमपुर नगर के दुर्गिल उद्यान में
केवलज्ञानी सुलोचन मुनिश्री पधारें, उस (१५) दुर्गिल उद्यान में एक बड़ा विशाल वरगद का पेड़ था, उसके नीचे एक
मन्दिर था, उसमें भद्रमुखी नाम की एक यक्षिणी रह रही थी। १६. अब यक्षिणी ने भक्ति में प्रणाम करके केवलज्ञानी (होने से)
__ संशय छेदनेवाले श्रीसुलोचनमुनि को पूछा कि१७. हे भगवन्त ! मैं पूर्वभव में सुवेल नाम के वेलंधर देव की,
मानवती नाम की मानवस्त्री होते हुए भी भोगपात्र प्राणप्रिय
प्रिया थी। १८. आयुष्य पूर्ण होने से मैं इस उद्यान में भद्रमुखी यक्षिणी हुई हूँ।
परं च 'मेरा पति कहाँ जनमा है ? मुझे पता नही है, तो यह
बात आप दिखावें । १९. तब केवली भगवन्त श्री सुलोचन मुनिने मधुर बानी में कहा, कि
हे भद्रमुखी ! तेरा (पूर्वभव का) प्रियतम (इस भव में) इस ही
नगरी के द्रोण राजा का पुत्र हुआ है । उसका नाम दुर्लभ है। ॥ कुमार का अपहरण ॥ २०-२४. इस बात सून, भद्रमुखी यक्षिणी प्रसन्न हो गई, और
(पूर्वभव का) मानवती का रूप धारण कर, दुर्लभराजकुमार के
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