________________
उपोद्घात
इस प्रकार बहुत कुछ इस गिरि का, इस ग्रंथ में माहात्म्य लिखा हुआ है। भरतराज ने इस गिरि पर जो कांचनमय मंदिर बनाया था उस का पुनरुद्धार पीछे से अनेक देव और नृपतियों ने किया। पुराण युग में किये गये ऐसे १२ उद्धारों का तथा कुछ ऐतिहासिक युग के भी उद्धारो का वर्णन इस माहात्म्य में लिखा हुआ है। भरतादिकों ने जो रत्नमय और पिछले उद्धारकों ने जो कांचनमय या रजतमय जिन प्रतिमायें प्रतिष्ठित की थीं उन्हें, अन्य उद्धारकोंने, भावी काल की नि:कृष्टता का ख्याल कर, पर्वत के किसी गुप्त गुहा-स्थान में स्थापित कर देने का जिक्र भी माहात्म्यकार ने स्पष्ट कर दिया है। और लिखा है कि वहाँ पर-उन गुप्त स्थानों में आज भी उन प्रतिमाओं की देवता निरंतर पूजा किया करते हैं ! पुराण-युग के १२ उद्धारों की नामावली इस प्रकार है
१-आदिनाथ तीर्थंकर के समय में भरत राजा का उद्धार। २-भरतराज के आठवे वंशज दंडवीर्य राजा का उद्धार । ३-सीमन्धर तीर्थंकर के उपदेश से ईशानेन्द्र का उद्धार । ४-माहेन्द्र नामक देवेन्द्र का उद्धार। ५-पाँचवे इन्द्र का उद्धार। ६-चमरेन्द्र का उद्धार। ७-अजितनाथ तीर्थंकर के बारे में सगर चक्रवर्ती का उद्धार। ८-व्यन्तरेन्द्र का उद्धार। ९-चन्द्रप्रभु तीर्थंकर के समय में चन्द्रयशा नृप का उद्धार । १०-शान्तिनाथ तीर्थंकर के पुत्र चक्रायुद्ध का उद्धार। ११-मुनिसुव्रतस्वामी के शासन में रामचन्द्र का उद्धार। १२-नेमिनाथ तीर्थंकर की विद्यमानता में पाण्डवों का उद्धार।
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org