SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपोद्घात गणधर और भरतनृपति के प्रथम पुत्र पुण्डरीक नामक महर्षि पाँचकोटि मुनियों के साथ चैत्री पूर्णिमा के दिन यहाँ पर मुक्त हुओ। इसके स्मरणार्थ प्रतिवर्ष इस पूर्णिमा को आज भी हजारों जैन यात्रार्थ आते हैं। इनके सिवा नमि-विनमी नाम के विद्याधर दो करोड मुनियों के साथ, द्रविड और वारिखिल्य नाम के दो भाई दश करोड मुनियों के साथ, भरतराज और उनके उत्तराधिकारी असंख्य नृपति, रामभरतादि तीन करोड मुनि, श्रीकृष्ण के प्रद्युम्न और शाम्ब आदि साढे आठ करोड कुमार, वीस करोड मुनि सहित पांडव भ्राता और नारदादि ९१ लाख मुनि यहाँ पर मुक्ति को पहुंचे हैं। और भी हजारों ऋषि-मुनि इस पर्वत पर तपश्चर्या कर निर्वाण प्राप्त हुए हैं। अनादि काल से असंख्य तीर्थंकर और श्रमण यहाँ पर मोक्ष को गये हैं और जायेगें। एक नेमिनाथ तीर्थंकर को छोड़कर शेष सब २३ ही तीर्थंकर इस गिरि का स्पर्श कर गये हैं। इस कारण यह तीर्थं संसार में सब से अधिक पवित्र हैं। जो मनुष्य भावपूर्वक एक बार भी इस सिद्धिक्षेत्र का स्पर्श कर पाता है वह तीन जन्म के भीतर अवश्य ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इस तीर्थं में जो पशु और पक्षी रहते हैं वे भी जन्मान्तरों में मुक्त हो जायेंगे। यहाँ तक लिखा है कि मयूरसर्पसिंहाद्या हिंस्रा अप्यत्र पर्वते। सिद्धाः सिध्यन्ति सेत्स्यन्ति प्राणिनो जिनदर्शनात्॥ वाल्येपि यौवने वायें तिर्यक्जातौ च यत्कृतम्। तत्पापं विलयं याति सिद्धाद्रेः स्पर्शनादपि॥ अर्थात्-मयूर, सर्प और सिंह आदि जैसे क्रूर और हिंसक प्राणी भी, जो इस पर्वत पर रहते हैं, जिन-देव के दर्शन से सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं। तथा बाल, यौवन और वृद्धावस्था में या तिर्यंज्ञ जाति में जो पाप किया हों वह इस पर्वत के स्पर्श मात्र से ही नष्ट हो जाता है। Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy