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उपोद्घात ऐतिहासिक-युग के उद्धारों में जावड-शाह का उद्धार मुख्यतया इस माहात्म्य में वर्णित है। सर अलेक्झान्डर किन्लॉक फॉर्बस (Honble Alexander Kinloch Forbes) साहबने अपनी 'रासमाला' नामक गुजरात के इतिहास की सुप्रसिद्ध पुस्तक में भी इस उद्धार का वर्णन उध्दृत किया है जो यहाँ पर दिया जाता है।
"जिस समय सुप्रसिद्ध नृपति विक्रमादित्य इस भारत-भूमि को ऋणमुक्त कर रहे थे उस समय भावड नामक एक दरिद्र-श्रावक भावल नामक अपनी भार्या सहित काम्पिल्यपुर नामक स्थान में रहता था। एक समय दो जैनमुनि उस के घर भिक्षार्थ आए। भावल ने उन्हें शुद्ध और निर्दोष आहार का भावपूर्वक दान दिया और बाद में अपनी दरिद्रावस्था के विषय में कुछ प्रश्न किया। मुनिने कहा:-एक उत्तम जाति की घोडी तुमारे घर पर बिकने आयगी उसे तुम ले लेना। उस घोडी के कारण तुमारी दरिद्रता नष्ट हो जायगी। यह कह कर मुनि अपने स्थान पर चले गये। भावल ने अपने पति भावड से मुनियों का कथन कह सुनाया। थोडे ही दिन में एक घोडी उस के घर पर आइ जिसे उसने खरीद लिया। उस की उसने अच्छी संभाल रखी। कुछ समय बाद उसने एक उत्तम लक्षण वाल घोडे को जन्म दिया। योग्य उम्र में आ जाने पर, एक राजा के पास उसे बेच दिया। राजाने उस के मूल्य में ३ लाख रुपये दिये। इन रुपयों द्वारा भावड ने बहुत से अच्छे अच्छे घोडे खरीद किये और उन्हें अच्छी तरह तैयार कर महाराज विक्रमादित्य के पास ले गया। राजा ने उन घोडों को लेकर उसके बदले में मधुवती (हाल में जिसे महुवा-बंदर कहते हैं और जो शजय से दक्षिण की ओर २०-२५ मील दूर पर है) गाँव भावड को इनाम में दिया। वहाँ पर भावड के एक पुत्र हुआ जिस का नाम जावड रक्खा गया। कुछ समय बाद भावड मर गया और जावड अपने पिता की संपत्ति का मालिक बना। एक समय, म्लेच्छ लोगों
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