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________________ परिशिष्ट ३ : विशेष शब्दार्थ ४७१ ४।२७ ५७१ २७ ३१४७ ३१४८ गढिय-बद्ध २।१२६ गति-प्रतिष्ठा, पदवी गामकंटय-इन्द्रिय-विषय ९/३७ गामधम्म-इन्द्रिय-विषय ९।४।३ गापिंडोलग-भिक्षु या अतिथि ९।४।११ गामिय-काम सम्बन्धी ९।। गिलासिणी-भस्मक रोग गुण-इन्द्रिय-विषय ११९३ गुणट्ठि-विषयार्थी १२६९ गुणसमिय–ईयासमिति आदि गुणों में युक्त गुणासाय--विषयलोलुप ५१५८ गुरु-दुस्त्यज, अनतिक्रमणीय ५।२ गेहि --कामासक्ति गोयावावी-जाति, कुल, बल आदि से युक्त गोत्र का अभिमान २०५० घासेसणा-आहार की एषणा ९।४।१० घोर (धम्म)—सभी आस्रवों का निरोधक संवर धर्म ६९१ चवण-मृत्यु ३।४५ चाई (वे)-सहन करने वाला ३७ चिट्ठे (दे)-गाढ, सघन ४।१८ चित्तणिवाति-चित्त को एकाग्र करने वाला ५।६९ चिरराइ—यावज्जीवन छउमत्थ-घनघाति कर्म से आवृत दशा ९।४११५ छंद-आसक्ति, स्वेच्छाचारिता ११७२ • इन्द्रिय सुखों की पराधीनता, दूसरों के अधीन रहना २१८६ ० इच्छा, अध्यवसाय, संकल्प श२५ छ8--दो दिन की तपस्या, बेला ९।४७ छण-हिंसा ३।२१ छणपय–हिंसात्मक कर्म २।१८० छय-इन्द्रियजयी, अनुपहत ५।१० जाति-जन्म, उत्पत्ति ३।२६ जाम-- अवस्था, वयोविभाग ८.१५ जायामाया--संयम-निर्वाह के योग्य आहार की मात्रा जीव-जीवत्व और आयुष्य कर्म के उपजीवी जुतिम-संयम जुद्धारिह-युद्ध के योग्य सामग्री ५२४६ झंझा (दे)-व्याकुलता ३२६९ झोसिए-आराधना की ५।४१ शोसित-सेवित, आचीणं ५१९८ गंदि-मानसिक तुष्टि, प्रमोद २।१६२ णाअ-हाथी ९।३।८ णाइ-ज्ञान ४८ णाय-नायक २११७० णालीया-शरीर से चार अंगुल बड़ी लाठी ९।३।५ णिइय--अपरिवर्तनीय स्वरूप ४/२ णिकरण -हिंसा का परिहार १२६१ निश्चित रूप से करना २।१५३ णिक्कम्मदंसि-आत्मदर्शी, मोक्षदर्शी णिक्खित्तदंड-हिंसा को छोड़ने वाला णिचय--संग्रह, संचय ३२३१ णिट्टियट्टि-कृतार्थ ५।११७ णिब्बलासय-निर्बल भोजन ५७९ णियग-आत्मीय जन णियम-परिमित काल के लिए भोग-उपभोग की वस्तुओं का प्रत्याख्यान २०५९ णियाग-मोक्ष ११३५ णिवाण-सहज आनन्द, चित्त की स्थिरता ६।१०२ णिविद-विरक्त हो, निश्चित जान णीयागोय-असत्कारार्ह गोत्र २०४९ णियाय-जानकर ५१४४ णिरुद्ध-परिमित, अल्पकालिक ४।३४ णिविज्ज-उदासीन होना ५९४ णिसन्न-- अनुन्नत, कृत-अनादर णिह-स्नेहवान् २११८६ णिह (३)-संग्रह करना २।११६ • छलना करना ४१५ णिहेज्ज-गोपन करना ५१४१ णूम (नम) (दे)-कर्म, माया ८1८।२४ त्त-इन्द्रियां तव-तप, स्वाद-विजय, आसन-विजय २०५९ तन्निवेसण-तनिष्ठ तस्सण्णी-स्मृति में एकाग्र ५२६८ ताण-क्रिया, चिकित्सा २१७७ तिप्पति-रोता है २११२४ तिप्पमाण-पीडित होता हुआ ८1८।१० तिरिच्छ-मध्यगत २।१३३ तिविज्ज-त्रिविद्य-पूर्वजन्म, जन्म-मरण और आस्रवक्षय-इन तीनों का ज्ञाता ३१२८ तुच्छ-विपन्न, दरिद्र २।१७४ तुट्ट-त्रोटक ६।११२ दइय-सम्मत ६७३ दंड-घात, हिंसा २।४२ ० कष्ट ५८५ वंत-इन्द्रिय और मन पर विजय पाने वाला ६।९३ दम-इन्द्रिय-विजय, कषाय-विजय २१५९ ४१४५ ४१ ८.३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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