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________________ ४७० इहलोइय ( उवसग्ग) - मनुष्यों द्वारा कृत ( उपसर्ग ) उग्गह- अवग्रह, स्थान उच्चागोय सरकार-सम्मानाई गोत्र ९।२।९ २११२ २४९ उच्चालइय-परमतत्त्व में लीन ३६२ उज्जुकड - संयमकारी १।३५ उट्ठियवाय ' मैं उद्यत हुआ हूं' ऐसी घोषणा करने वाला ५।१७ उत्तरवाद - उत्कृष्ट सिद्धान्त ६/४९ उदरि-जलोदर रोग से ग्रस्त ६८ २१४ उवित्ता प्राणवधक, उत्त्रासक उद्देस - व्यपदेश, कथन २।७३ उच्यमाण -- अहंकारग्रस्त ५।६४ उम्मग्ग- उन्मज्जन-स्रोतों का निरोध और अपरिग्रह ३२५० ० विवर ६।६ -- उवक्कम - आयुष्य-विधातक वस्तु दादा६ उवरय-संयत, विरत अथवा संयम में निकटता से रत ३।४१ उवराय - उपरात्र-रात्री के अंतिम दो प्रहर ९।४।६ उबवाय जन्म ३।४५ ६।३० २।१८ ३।१९ ३१८७ ५। ५२ ३ ५५ ५।९६ ८५२ ९।२।११ ५।१७ उवसम-संयम उवाइयसेस - उपभोग के बाद बचा हुआ वाहि-व्यवहार व्यपदेश, विशेषण ० कषाय-जनित आत्म-परिणाम उवेहमाण -- निकटता से देखने वाला उवेहा—समझ, पर्यालोचन • मध्यस्थभाव एकसाड - एक शाटक वाला मुनि एगचर- अकेला घूमने वाला पारदारिक एगचरिया - एकलविहार, एकाकी चर्या एगत्तगय-- एकत्व - अनुप्रेक्षा से भावित एगप्पमुह-लक्ष्याभिमुख एगायतण- देहातीत चैतन्य एज-वायु एयाणुपत्ति कर्मविपाक को देखने वाला • वर्तमानदर्शी ९।१।११ ५। ५४ ५।३० १।१४५ २०५३ ३।६० १७ २।१६५ एयावंति इतने ओघ प्रवाह ओघंतर - कर्मजनितसंस्कार अथवा संसार के प्रवाह को Jain Education International तैरने वाला ओमचेलिय- अतिसाधारण या अल्प वस्त्र धारण करने वाला ओमाण - ऐसा भोज, जहां गणना से अधिक खाने वालों की उपस्थिति हो जाने के कारण भोजन कम हो जाए २।१६५ ८४८ ९।१।१९ ओमोरिय - अल्पीकरण ओय - अकेला • एक, वीतराग, मध्यस्थ अहिंसक, अपरिग्रही " ओववाह पुनर्जन्म लेने वाले o ओह प्रवाह ओहंतरप - संसार - समुद्र का पारगामी कप्पति — करता है कम्म – प्रवृत्ति, कर्म-पुद्गल कम्मकोविय – प्रवृत्ति-कुशल कम्मसमारंभ हिंसात्मक प्रवृत्ति विशेष कम्मोवसंति नए कर्मों को न करना और पुराने कर्मों का क्षय करना कयकिरिय- शरीर की साज-सज्जा करने वाला कसाइत्था - रुष्ट होकर दुर्व्यवहार करना कहकह- संशय करना काम-कामना कामंकम - कामाभिलाषी कामकामि विषयों की कामना करने वाला -- • भगवान् महावीर आचारांग माध्यम् ६/४० ५।१२६ ६।१०० केयण चलनी कामसमपुण्य कामप्रार्थी काल - समाधिमरण काल कालकंखि मृत्यु के प्रति अनुद्विग्न तटस्थ भाव से मृत्यु को देखने वाला कालपरियाय - मृत्यु कालेणुट्ठाइ - पराक्रम - काल में पराक्रम करने वाला कुंताइ - भाला आदि शस्त्र कुचर-चोर, पारदारिक कुसल - वीतराग, वीतरागता का साधक ● सर्वपरिज्ञाचारी, केवली खण-क्षण, मध्य खणयण्ण -क्षण को जानने वाला खम - कालोचित खेत्त-अनाच्छादित भूमि खेम - सम्यक् पालन खेयण्ण क्षेत्र को जानने वाला For Private & Personal Use Only • क्षेत्र का अर्थ है - शरीर, काम, इन्द्रियविषय, हिंसा और मन-वचन काया की प्रवृत्ति । जो इन सबको जानता है, वह क्षेत्रज्ञ कहलाता है बंध परिवह • बन्धन ८।३७ १२ २।७१ ६।२७ २।१५० ४।५१ ५।१८ १०७ २।१५५ ५।८७ ९।२।११ ८।१०७ २१२१ २।१३४ २।१२३ २।७४ ५।९२ ३।३८ ५।५९ २1११० ९।३।१० ९।२८ २।९५ २।१८२ ५।६७ ३।४२ ५।२१ २।११० ८।६१ २५७ दादा६ २1११० ३।१६ ३।५० ८२५ www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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