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________________ ४७२ आचारांगभाष्यम् १११४९ ३१७० ९४७ ५।३७ श६७ ३२ १११४५ २०३६ ९।३।६ ६१५५ ९।४।७ २।१६६ ३।६२ ३३५ २०६१ ६।२४ ४।२५ दविय -संयम के योग्य • राग-द्वेष से अपराजित दसम-चार दिन की तपस्या, चोला दिट्ठ-इन्द्रिय-विषय दोहराय-आजीवन दीहलोग-वनस्पति जगत् बुक्ख---अज्ञान, कर्म दुगुंछणा- जुगुप्सा दुगुंछमाण-प्रतिकार करता हुआ दुच्चरग - ऐसा गांव जहां विहार करना ___ कठिन होता है दुभि (दे)-अमनोज्ञ दुवालसम-पांच दिन की तपस्या, पंचोला दुस्वसु--दरिद्र दूरालइय-कामनाओं से दूर धम्म विउ-द्रव्य के स्वभाव को जानने वाला धुवचारि ---शाश्वत की ओर गतिशील धूयवाद-साधना की विशेष पद्धति निकाय स्थापित कर निधाय-परिहार निप्पीलए-साधना की तीसरी भूमिका निरामगंध-भोजन के प्रति अनासक्त नूम-माया पंत (दे)-तुच्छ पगंथ (दे)-आक्रोश करना पगप्प-मर्यादा पगम्भति-उच्छृखल व्यवहार करना पच्चासी-पुनः चाहना पज्जवजायसस्थ असंयम पडिग्गह-पात्र पडिलेहंति -विषयों में चित्त को स्थापित करते हैं पडिलेहा ---पर्यालोचना पडुच्च-- अपेक्षा से पण्णाणमंत-निश्चय दृष्टिकोण • चौदहपूर्वी, आचारांगधर पणियसाला-दुकान पंत-बासी भोजन, पर्युषित आहार तुच्छ ०पंतआसण-मिट्टी से लिपे-पुते स्थान • पंतसेज्जा-शून्यगृह पतेरस-तेरहवां पबुद्ध-अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, आगम-विशारद ९।३७ ४१४० २।१०८ ८1८।२४ ९।३।२ पया-स्त्री ५१५४ पर-श्रावक, संज्ञी, यथाभद्रक ८७५ ० गृहस्थ ९।१।१९ परम-पारिणामिक भाव, मोक्ष ३१२८ परमवंसि-पारिणामिकभावदर्शी, चैतन्यदर्शी ३२३८ परमाराम-परम सुखदायी ५७७ परलोइय (उवसग्ग)-तिर्यञ्चों द्वारा कृत (उपसर्ग) ९।२।९ परवागरण-आप्त-निरूपण ११३ परिजुण्ण-अभावग्रस्त १११३ परिण्णा -विवेक ११९ • दुःखमुक्ति का उपाय २।१७१ परिण्णायकम्म-कर्मत्यागी १।१२ परिणिवुड-शान्तचित्त ६।१०७ परितप्पति-संतप्त होता है २।१२४ परिघासेउ-भोजन कराने के लिए ८।२३ परिनिव्वाण-सुख ११२१ परिवएज्जा-तिरस्कार करता है २७ परिस्सव-कर्म-निर्जरण का हेतुभूत आत्म-परिणाम ४।१२ परिहरेज्जा-परिभोग करे २।११५ पलिउच्छन्न-कर्मों से आच्छादित ५।१७ पलिच्छिदिय–छिन्न कर ३।३५ पलिछिन्न-विजित ४।४५ पलिबाहरे (दे)-संकुचित करना ५।६९ पलियं (दे)-कर्म . प्रवृत्ति ६१४२ पलियंतकर-घात्यकर्मों का अंत करने वाला ३२७२ पलियट्ठाण-कारखाना ९।२।२ पवीलए-साधना की दूसरी भूमिका ४/४० पहेण (दे)-उपहारस्वरूप दी जाने वाली मिठाई २।१०४ पाण-आन-अपान, उच्छ्वास-निःश्वास से युक्त प्राणी पायपुंछण-रजोहरण ६।३१ पार-संयम २१३४ पारगामि-संयम के आराधक २।३५ पावग-अशुद्ध ९।१।१८ पावाइय--प्रवचनकार ४१३० पास-पाश-प्रेमानुबंधन पासय-द्रष्टा, वस्तुसत्य को देखने वाला २०७३ • अहिंसक, भगवान् महावीर ३७२ पासणिय--वासनोद्दीपक पदार्थों को देखने वाला ५२८७ पासिय-दृष्टिमान् ३७० पिहियच्च-कायिक प्रवृत्ति का संवरण करने वाला ९।१।११ पीढसप्पि-पंगुता ४।२७ ६।४२ ८७६ ५।५१ २।१३२ ३।१७ २।३२ २१३८ ५।१०५ ४.४७ ५९० ९।२।२ २।१६४ ९३२ ३।२९ ९।३।२ ९।२।४ ५।९० ६८ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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